चश्मा टूट गया तो क्या हुआ,बिना चश्मा पहने दुनिया के सबसे तेज गेंदबाजों को खेला 1 घंटे तक इस भारतीय बल्लेबाज ने  

Updated: Tue, Aug 20 2024 15:12 IST
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अंशुमन गायकवाड़ (Anshuman Gaekwad) के निधन पर उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया- रन बनाने की टेलेंट, हिम्मत और बिना किसी डर, टीम के लिए खेलना उनकी सबसे बड़ी खूबी थे। 1982-83 में जालंधर में पाकिस्तान के विरुद्ध धीमे 201 रन के लिए मशहूर हुए तो 1975-76 में जमैका में बहते खून में घायल होकर भी 81 रन बनाए। इसे ही उनकी हिम्मत की सबसे बड़ी मिसाल गिनते हैं। 

एक और भी मिसाल है जिसका कहीं जिक्र नहीं होता शायद इसलिए कि ये उनके करियर के शुरू के दिनों का किस्सा है और ये कोई इंटरनेशनल मैच नहीं था। सच ये है कि ये क्रिकेट के, हिम्मत के मामले में, सबसे अनोखे किस्से में से एक है। सब जानते हैं वे साहसी क्रिकेटर थे, बिना हेलमेट सबसे तेज गेंदबाजों को खेलना, सिर या शरीर पर गेंद लगने से न घबराना पर नजर कमजोर होने के बावजूद, मजबूरी में बिना चश्मा लगाए बल्लेबाजी- ऐसा शायद, उनके अलावा किसी ने न किया होगा। 

1974-75 में, कोलकाता में ईडन गार्डन्स में वेस्टइंडीज के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू के बाद बहुत जल्दी अपनी हिम्मत और पिच पर टिकने की खूबी के साथ पहचान बनाई। उनकी इसी बल्लेबाजी ने आगे के बल्लेबाज का काम आसान कर दिया। ये किस्सा है 1979 के इंग्लैंड टूर का। ये भारत की क्रिकेट के लिए बड़ा ख़ास साल था क्योंकि न सिर्फ इंग्लैंड में दूसरे वर्ल्ड कप में खेले- एक 4 टेस्ट की सीरीज भी खेले। पहले वर्ल्ड कप के मैच हुए जिसमें भारत के हाथ निराशा ही लगी। उसके बाद सीरीज शुरू हुई जिसमें 16 फर्स्ट क्लास मैच में सिर्फ 1 में जीत मिली- इसकी तुलना में 3 हार और 12 ड्रॉ रहे। 4 टेस्ट की सीरीज इंग्लैंड ने 1-0 से जीती। 

तब कप्तान एस वेंकटराघवन थे और ये रिकॉर्ड में है कि वे जिद्दी और किसी की न सुनने वाले कप्तान थे। उनके कप्तान के दौर में भारत के साधारण रिकॉर्ड में, उनके इस व्यवहार का बड़ा ख़ास योगदान था। यहां टूर में नॉटिंघमशायर काउंटी के विरुद्ध मैच का जिक्र कर रहे हैं। इस मैच का स्कोर कार्ड भारत की 3 दिन में हार के अतिरिक्त और कुछ ख़ास  नहीं बताता। काउंटी क्लब ने अपने तेज गेंदबाजों की मदद के लिए तेज, हरा विकेट तैयार किया था और वे सही थे क्योंकि तब उनके पास रिचर्ड हैडली और क्लाइव राइस जैसे दो फ्रंट-लाइन गेंदबाज थे। 

जब मैच के लिए इंडिया इलेवन ट्रेंट ब्रिज ग्राउंड पहुंची तो वहां बस से उतरते हुए, अचानक धक्का लगने से, अंशुमन गायकवाड़ का चश्मा न सिर्फ गिर गया, उनका अपना पैर भी उस चश्मे के ऊपर आ गया। चश्मा टूट गया और अब सवाल ये था कि चश्मे के बिना खेलेंगे कैसे? उनके पास एक रिजर्व चश्मा था पर दिक्कत ये थी कि वह होटल में था। ऐसे में चिंता ये थी कि अगर भारत ने टॉस जीतकर बैटिंग चुनी तो अंशुमन चश्मे के बिना बैटिंग कैसे करेंगे और वह भी तब जबकि सामने दुनिया के दो टॉप गेंदबाज अटैक में हों। 

अंशुमन ने वेंकट से कहा कि फटाफट होटल से चश्मा ले आते हैं- वेंकट ने इसकी  इजाजत नहीं दी। संयोग से भारत ने पहले बैटिंग की। ये जानते हुए भी कि अंशुमन के पास चश्मा नहीं है- वैंकट ने उन्हें ओपनिंग के लिए कहा। दूसरे ओपनर चेतन चौहान थे। सब खिलाड़ी ये चिंता कर रहे थे कि बिना चश्मे के अंशु तेज गेंदबाजों का सामना कैसे कर पाएंगे? मुद्दा उनके जल्दी आउट होने से भी बड़ा ये था कि ये तो साफ़-साफ़ किसी बड़ी चोट को न्यौता देने वाली बात थी। कप्तान के अतिरिक्त, सब चिंता कर रहे थे पर अंशुमन ने बड़ी हिम्मत दिखाई और एक बार भी बैटिंग से इंकार नहीं किया। अंशुमन ने तब बाकी खिलाड़ियों को कहा था- 'कभी-कभी टीम के लिए बलिदान देना पड़ता है क्योंकि किसी और के लिए इस तरह के ट्रैक पर मेरी जगह लेना सही नहीं होगा।' खुद चश्मे के बिना उस पिच पर बैटिंग के लिए तैयार थे जिस पर गेंद को गजब का बाउंस मिल रहा था। 

अंशुमन को 11 के स्कोर पर क्लाइव राइस ने बोल्ड किया पर उससे पहले वे बिना चश्मे के लगभग एक घंटा बैटिंग कर चुके थे। ये बल्लेबाजी किसी कमाल से कम नहीं थी- जिस बल्लेबाज को देखने में दिक्कत हो, वह बिना डर लगभग एक घंटे तक टिका रहे- ये किसी बहादुरी से कम नहीं पर चूंकि ये हुआ एक फर्स्ट क्लास मैच में इसलिए उनकी इस हिम्मत को वह चर्चा मिली ही नहीं जो मिलनी चाहिए थी। अंशुमान के क्रिकेट करियर को अगर कोई टाइटल देना हो तो 'चुनौती के सामने खुद को साबित करने की लड़ाई' से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। 

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- चरनपाल सिंह सोबती 

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