जब पाकिस्तान के कप्तान ने भारत के खिलाफ टेस्ट मैच में की थी ‘टॉस फीक्सिंग’,कोई नहीं जानता कौन जीता था

Updated: Tue, Feb 21 2023 15:42 IST
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पाकिस्तान में मैच फिक्सिंग जांच के साथ कई हस्तियों का नाम आता है पर जो जिक्र जस्टिस कय्यूम कमीशन का है- वह सबसे अलग है। 79 साल की उम्र में जस्टिस कय्यूम का निधन हो गया है। उन्हीं के कमीशन की जांच पर, सलीम मलिक और अता-उर-रहमान पर आजीवन क्रिकेट का प्रतिबंध लगा और 1990 के दशक के आख़िरी सालों तथा 2000 के दशक की शुरुआत में कई क्रिकेटरों का नाम  मैच फिक्सिंग में आया। इस तरह उन्हें, हमेशा उस व्यक्ति के तौर पर याद किया जाएगा, जिसने कहीं भी, मैच फिक्सिंग की सबसे बड़ी जांच में से एक को हैड किया। 

उनके कमीशन ने, लगभग एक साल की लंबी पूछताछ के बाद, जो रिपोर्ट दी, वह मई 2000 में रिलीज हुई। जब भी, इस कमीशन का जिक्र होता है तो इस तरह का ही परिचय दिया जाता है उनकी रिपोर्ट का। ये तो वह सब है जिसकी जांच के लिए उन्हें कहा गया। वे जज थे और मौजूदा मैच फिक्सिंग तक पहुंचने के लिए, इसके पिछले सालों के जिक्र में अपने आप झांक लिया। उनकी रिपोर्ट के जिस पहलू को पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने भी महत्व नहीं दिया, वह ये है कि आखिरकार पहली बार कब पाकिस्तान के किसी भी क्रिकेटर का नाम मैच फिक्सिंग के जिक्र में लिया गया। उसी किस्से पर चलते हैं और भारत के लिए तो ये और भी ख़ास है क्योंकि न सिर्फ मैच की दूसरी टीम भारत थी- मैच भी भारत में खेला गया।   

पहली बार किसी पाकिस्तानी क्रिकेटर पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा 1979-80 में। आसिफ इकबाल पाकिस्तानी टीम के कप्तान थे और टीम आई भारत में सीरीज खेलने। कोलकाता में सीरीज का 6वां टेस्ट था और टीम इंडिया के उस टेस्ट के कप्तान थे गुंडप्पा विश्वनाथ। सीरीज के लिए, नियमित कप्तान तो सुनील गावस्कर थे पर इस टेस्ट से पहले उन्होंने कह दिया कि वे नहीं खेल पाएंगे और कप्तानी मिल गई विश्वनाथ को।  

विश्वनाथ, तो पहली बार टेस्ट में कप्तानी कर रहे थे और सामने थे अनुभवी आसिफ इकबाल। 29 जनवरी, 1980 को ईडन गार्डन्स, कोलकाता में सुबह- दोनों कप्तान टॉस के लिए गए और स्कोरकार्ड के हिसाब से टॉस विश्वनाथ ने जीता। विवाद यहां से शुरू हुआ कि बाद में विश्वनाथ ने, दबी आवाज में कहीं-कहीं, कह दिया कि पाकिस्तानी कप्तान ने टॉस 'पूरा' हुए बिना उन्हें टॉस जीतने की 'बधाई' दे दी- और कह दिया कि भारतीय कप्तान ने टॉस जीता है। ये है किस्सा। वास्तव में वह टॉस किसने जीता था- कोई नहीं जानता। 

अब इस किस्से पर और चर्चा में उन हालात को जानना जरूरी है जिनमें विश्वनाथ भारत के कप्तान बने थे। उस छठे टेस्ट से पहले, भारत सीरीज में 2-0 से आगे था यानि कि सीरीज में जीत पक्की हो चुकी थी। इसलिए भारत ने भी विश्वनाथ को पाकिस्तान जैसी टीम के विरुद्ध भी पहली बार कप्तान बनाने का जोखिम उठा लिया। विशी ने बाद में ये भी संकेत दिया कि उन्हें यूं लगा कि टॉस पाकिस्तान ने जीता पर आसिफ ने जो तेजी दिखाई- उसके सामने, पहली बार के टेस्ट कप्तान और वह भी नरम मिजाज वाले विश्वनाथ, 'ऑन द स्पॉट' इस मामले को उठाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। नतीजा- टॉस का जो नतीजा आसिफ चाहते थे, वह उन्हें मिल गया।  

कई साल के बाद, इस मामले में एक और बात सामने आई। टीम, कोलकाता में, जिस होटल में ठहरी थीं, वहीं भारत के भूतपूर्व कप्तान नवाब पटौदी भी ठहरे हुए थे। टेस्ट शुरू होने से पिछली देर रात, अचानक ही पटौदी को विश्वनाथ का मैसेज मिला कि किसी जरूरी बात के लिए वे फौरन उनसे मिलना चाहते हैं। पटौदी ही क्यों? इसका जवाब ये है कि जब 1969 में विश्वनाथ ने टेस्ट डेब्यू किया था तो पटौदी कप्तान थे और कानपूर के उस डेब्यू टेस्ट में पहली पारी में 0 पर आउट होने के बावजूद पटौदी ने उन्हें जो हौसला दिया था- वे उसे कभी भूले नहीं। अब कोलकाता में भी वे किसी ख़ास मसले पर पटौदी से बात करना चाहते थे- इसी उम्मीद में कि ठीक सलाह मिलेगी। 

विश्वनाथ ने तब पटौदी को बताया कि आसिफ इकबाल ने उनसे मिलकर कहा था कि हर कप्तान टॉस जीतना चाहता है और उन्होंने विश्वनाथ को वायदा कर दिया कि कल सुबह उन्हें ही टॉस जीतने वाला कहेंगे- सिक्का चाहे जैसे भी गिरे। विश्वनाथ इतने साल खेल कर ये तो जान चुके थे कि जो वे कह रहे हैं- उसका मतलब उतना ही नहीं है, जो दिखाई दे रहा है।  

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उस कोलकाता टेस्ट में खेल के दौरान भी कुछ ऐसा हुआ जो 'क्रिकेट' नहीं लगा पर वह एक अलग स्टोरी है। जस्टिस कय्यूम ने अपनी रिपोर्ट में किस्सों को इसी टॉस से शुरू किया पर उनकी रिपोर्ट का ये ख़ास पहलू, वह मसला था जिसमें शायद किसी की अब रूचि नहीं थी।
 

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