जब सब भूल गए थे क्रिकेट को

Updated: Wed, Feb 11 2015 00:23 IST

हम उस समय की बात कर रहें है जब क्रिकेट को सब बुल गए थे,काफी समय तक कोई क्रिकेट नहीं खेल पाया था।  यह है पहला विश्व युद्ध। हालांकि सकंट के बादल तो 1914 से पहले ही मंडरा रहे थे लेकिन औपचारिक तौर पर पहले विश्व युद्ध की शुरूआत अगस्त 1914 में हुई। जैसे की महीना खुद संकेत दे रहा है उस समय सिर्फ इंग्लैंड में क्रिकेट चल रहा था। तब आज की तरह मैचों की गिनती ज्यादा नहीं थी और इंग्लैंड में जब क्रिकेट सत्र चलता था तो और किसी भी देश मे क्रिकेट नहीं खेली जाती थी। इंग्लैंड मे काउंटी चैंपियनशिप के मैच चल रहे थे।

जैसे ही इंग्लैंड में जर्मनी से लड़ाई की घोषणा की तो वैसे ही इसे विश्व युद्ध का नाम दे दिया। क्योंकि यह बहुत बड़ी लड़ाई थी। दोनों देशों के अपने अपने गुट थे और वास्तव में लड़ाई में कई देश शामिल हो गए थे। इसलिए इसे विश्व युद्ध का नाम दिया गया। ये लड़ाई इतनी बड़ी थी कि इंग्लैंड में काउंटी चैंपियनशिप में जो मैच खेले जा रहे थे उन्हें लड़ाई शुरू होते ही मैच के बीच में रोक दिया गया। ये भी इंतजार नहीं किया गया कि वह मैच खत्म तो हो जाते। यह भी नहीं सोचा गया कि कोशिश तो की जाए कि खेलों को विश्व युद्ध से दूर रखा जाए। उस समय हर को विश्व युद्ध में इस तरह शामिल था कि क्रिकेट की तो किसी को चिंता नहीं थी। इसलिए जब काउंटी चैंपियनशिप के मैच रोके या विश्व युद्ध की वजह से इंटरनेशनल लेवल पर भी मैचों का आयोजन रूक गया तो किसी ने इसकी चिंता भी नहीं की। 

पहले विश्व युद्ध के कारण 6 साल से ज्यादा तक इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं खेला गया था। हालांकि मैच तो कम होते थे लेकिन कम से कम इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच तो मुकाबला चलता रहता था। इन दोनों टीमों के मैच साउथ अफ्रीका के साथ होते थे और वे भी रूक गए। इस तरह विश्व युद्ध के कारण किसी का ध्यान क्रिकेट खेलने पर नहीं था। 

चूंकि विश्व युद्ध में शामिल देशों में इंग्लैंड एक बड़ा नाम था और इंग्लैंड में ही क्रिकेट खेली जा रही थी , इसलिए इंग्लैंड की क्रिकेट पर विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा असर आया। जहां एक तरफ काउंटी चैंपियनशिप और इंटरनेशनल मैच रूके वहीं टीमें भी छिन्न भिन्न हो गई। जो जो खिलाड़ी जिस भी तरह से सेना ,एयरफोर्स या नेवी से जुड़े हुए थे उन्हें फौरन ड्यूटी पर बुला लिया गया। यह भी क्रिकेट रूकने की बड़ी वजह थी। इंग्लैंड की लगभग हर काउंटी टीम इस फैसले से प्रभावित हुई थी। अगर मैच खेलने का फैसला हो भा जाता तो भी टीमों के पा अच्छी टीम मैदान में उतारने योग्य खिलाड़ी नहीं थे। 

यहां तक कि ब्रिटिश सेना को यह अधिकार दे दिया कि वे अपनी जरूरत के लिए किसी भी बिल्डिंग को सेना की छावनी में बदल सकते हैं। ऐसे में ओल्ड ट्रेफर्ड , द ओवल औऱ लॉर्ड्स के स्टेडियम सबसे ज्यादा चपेट में आए। इन 3 स्टेडियम में से तो काउंटी टीम के ऑफिस ही हटा दिए गए थे। लॉर्ड्स के ज्यादातर हिस्से पर सेना का कब्जा था। एमसीसी की कार्रवाई भी इसी वजह से रूक गई और इंटरनेशनल क्रिकेट पर उसका असर आया।

इस पूरी चर्चा से यह स्पष्ट है कि क्रिकेट के लिए माहौल था ही नहीं , ऐस मे क्रिकेट कहां से होती। क्रिकेट खेलने वाले भी नहीं थे । जब सब कुछ रूक गया था तो उन सालों क्रिकेट के नाम पर क्या हुआ। हालांकि विश्व युद्ध का रिकॉर्ड रखा गया लेकिन उस रिकॉर्ड में क्रिकेट का जिक्र कहां है। आज मीडिया का जाल जिस तरह फैल चुका है , 100 साल पहले ऐसा नहीं था । आज की तरह हर घटना को रिकॉर्ड बनाकर कैमरे में बंद नहीं किया जाता था। जो भी सुविधाएं थी उनमें विश्व युद्ध का रिकॉर्ड तो रखा लेकिन क्रिकेट का रिकॉर्ड किसने रखा। 

चूंकि इंग्लैंड में क्रिकेट का आयोजन रूक गया था और क्रिकेट की तरफ किसी का ध्यान नहीं था इसलिए क्रिकेट के सभी प्रकाशन भी बंद हो गए थे। विजडेन क्रिकेटर्स अलमनाक को यू तो एक सालाना अलमनाक कहा जाता है लेकिऩ इसकी सबसे बड़ी यह रही कि इसने क्रिकेट के इतिहास को दर्ज किया। क्रिकेट का खेल किस तरह बढ़ा और किन किन मुश्किलों से गुजरता गया। उसका पूरा रिकॉर्ड रखा विजडन ने। 

विश्व युद्ध के बाद विजडन को मालूम था कि उनके वार्षिकांक की ब्रिकी पर असर आएगी। 1914 में तो सत्र अधूरा रह गया था। लेकिन उसके बाद तो काउंटी चैंपियनशिप शुरू ही नहीं हुई। यानी की विजडन क्रिकेटर्स अलमनाक के पास छापने के लिए कोई मसाला थी ही नहीं।  इस सबको देखकर समझदारी का तकाजा तो यह कहता था कि विजडन का प्रकाशन भी रोक देना चाहिए था।  न उसमें छापने के लिए मैच थे और न हीं यह गारंटी कि इसे पढ़ने वाले मौजूद हैं। 

विजडन के प्रकाशकों ने पहले तो यही फैसला लिया कि इसका प्रकाशन रोक देंगे। उसके बाद पूरे हालत पर एक अलग तरह से नजर डाली गई। विजडन ने यह महसूस किया कि उनकी पहली भूमिका क्रिकेट से पैसा कमाना नहीं है , उनकी पहली भूमिका है क्रिकेट का रिकॉर्ड दर्ज करना है और क्रिकेट के इतिहास के सफर को लिखना है। 

इसका मतलब यह था कि अगर विश्व युद्ध के सालों मे विजडन का प्रकाशन रोक दिया गया तो इन सालों में क्रिकेट से जुड़ी जो भी घटनाएं होंगी उनका रिकॉर्ड कौन रखेगा। । अगर विजडन छपेगी तो विजडन में लिखने वाले उन घटनाओं का रिकॉर्ड रखेंगे। अगर विजडन छपी ही नहीं रही होगी तो उन घटनाओं का रिकॉर्ड रखने में किसी को रूचि होगी भी तो कैसे। 
ऐसे में विजडन ने अपने व्यापारिक फायदे को नहीं क्रिकेट के रिकॉर्ड की जिम्मेदारी को महत्व दिया और तय किया कि विजडन का प्रकाशन जारी रहेगा। इस तरह विश्व युद्ध के सालों में विजडन क्रिकेटर्स अलमनाक का प्रकाशन होता रहा। मैच भी नहीं थे वैसे भी क्रिकेट के लिए सही माहौल नहीं था, इसलिए विजडन के अंक एकदम पतले हो गए और उनकी प्रतियां भी कम छापी गई। लेकिन विजडन ने विश्व युद्ध की वजह से क्रिकेट पर आ रहे असर को नजरअंदाज नहीं किया तथा इसका पूरा रिकॉर्ड करने की कोशिश की। 

इस रिकॉर्ड में सबसे खास बात यह है कि विजडन ने उन खिलाड़ियों का रिकॉर्ड रखा जो विश्व युद्ध की ड्यूटी में शामिल थे यानी की सेना में चले गए थे। इन खिलाड़ियों का सेना में प्रदर्शन कैसा रहा और जो जो खिलाड़ी सेना में ड्यूटी पर अपनी जान गवांता रहा उसके बारे में विजडन ने श्रृदांजली छापी। इंग्लैंड को 1915-16 में ऑस्ट्रेलिया जाना था। उसी सत्र में ऑस्ट्रेलिया को दक्षिण अफ्रीका जाना था। विश्व युद्ध में शामिल न होने का दक्षिण अफ्रीका वाले खेलना चाहते थे लेकिन ये दोनों श्रृंखलाएं आखिर में रद्द हुई। 

1915 से 1918 तक काउंटी चैंपियनशिप का आयोजन नहीं हुआ। 1919 में क्रिकेट की वापसी हुई। लेकिन पूरी तरह से नहीं । विश्व युद्ध के बाद भी सेना को स्टेडियम खाली करने में सालों लग गए। इसके अतिरिक्त इंटरनेशनल सारीज का आयोजन तय करने मे कई महीने लग गए। इस तरीके से यही कहा जा सकता है कि वास्तव में विश्व युद्ध के बाद क्रिकेट शुरू होने में समय लगा औऱ 1920 के सत्र से ही क्रिकेट की शुरूआत हुई। 

इन सब सालों में फिर से क्रिकेट से जुड़ा क्या क्या होता रहा, उसका रिकॉर्ड रखा विजडन ने। यह तो स्पष्ट है कि जो खिलाड़ी विश्व युद्ध के कारण क्रिकेट रूकने के समय खेल रहे थे उनमें से हर कोई विश्व कप के बाद क्रिकेट के मैदान में वापसी करने के लिए फिट नहीं था। इस तरह बढ़ती उम्र के कारण कई खिलाड़ी गायब हो गए। इनमें से फिलिप मीड, पर्सी होम्स , बर्स सटक्लिफ और एंड्रयू सैडहम जैसे खिलाड़ियों का नाम खास तौर पर लिया जाएगा। 

कई अपनी जान गवांने के कारण क्रिकेट के मैदान से गायब हुए। अन्य अपनी बढ़ती उम्र की वजह से दुनिया को अलविदा कह गए। इस कड़ी मे दो नाम खास तौर पर लिए जाएंगे। इनमें से एक नाम डब्लयूजी ग्रेस का तो दूसरा ऑस्ट्रेलिया के विक्टर ट्रंपर का था। विजडन इन सब के बारे में छापती रहीं। खास तौर पर ग्रेस के देहांत तो बहुत बड़ी खबर थी और विजडन ने इन पर कई पेज छापे। कई अनुमानों के अनुसार तब 50 से ज्यादा पेजों मे ग्रेस के बारे में जानकारी दी गई थी। 

आज जबकि विश्व युद्ध को 100 साल हो चुके हैं तो यह जानकर हैरानी होती है विजडन ने विश्व युद्ध में मरने वाले खिलाड़ियों का पूरा रिकॉर्ड रखकर इन खिलाड़ियों के योगदान को यादगार बना दिया। अगर उन सालों में विजडन नहीं छपती तो पता ही नहीं चलता की ये क्रिकेटर्स कहां गए। 

विजडन को विश्व युद्ध के सालों में भी घाटा नहीं हुआ, क्योंकि जिन खिलाड़ियों की सेना में ड्यूटी के दौरान मौत हो रही थी उनके घरवाले उन अंकों को अपने पास रखने के लिए खरीद रहे थे। विजडन के के अनुसार विश्व युद्ध के कारण 1788 खिलाड़ियों की मौत हुई। इस गिनती में वह खिलाड़ी भी शामिल हैं जो विश्व युद्ध खत्म होने के समय तो जीवित थे, लेकिन उन्हें लड़ाई मे ऐसी चोटें आई थी जिनकी वजह से बाद में उनकी मौत हो गई थी। जिन खिलाड़ियों की विश्व युद्ध के कारण मौत हुई उनमें से 289 फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेले थे। 

विजडन में अपनी तरफ से हर खिलाड़ी का रिकॉर्ड रखने की कोशिश की लेकिन तब भी 89 खिलाड़ी ऐसे रह गए जिनका कोई पता नहीं लगा।  विजडन ने उनके बारे में पता करने की कोशिश को जारी रखा औऱ जब जब पता चलता रहा उनके बारे में छापते रहे। 

जब क्रिकेटरों ने सेनी की ड्यूटी दी और वीरता दिखाई तो उन्हें इसके लिए तरह तरह के तमगे मिले होंगे। विजडन के अनुसार 407 खिलाड़ी ऐसे थे जिन्हें विश्व युद्ध की ड्यूटी में वीरता औऱ योगदान के लिए सरकारी तौर पर सम्मानित किया गया और तमगे दिए गए । युद्ध न हो तभी अच्छा है और विजडन तो यह काम दो बार कर चुकी है , क्योंकि कुछ साल बाद एक विश्व युद्ध और भी हुआ। अगर विजडन ने उन सालों में क्रिकेट का रिकॉर्ड न रखा होता तो कुछ पता भी नहीं लगता । जो देश विश्व युद्ध से प्रभावित नहीं थे वहां छोटे पैमाने पर क्रिकेट चलता रहा।   

(सौजन्य: क्रिकेट भारती)

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