Cricket Tales - 1992 विश्व कप जीत के बाद जो पाकिस्तान क्रिकेट में हुआ वह अनोखा था
Cricket Tales | क्रिकेट के अनसुने दिलचस्प किस्से - इस साल, टी20 विश्व कप फाइनल के मौके पर, 1992 के 50 ओवर विश्व कप फाइनल के रिपीट का खूब जिक्र हुआ क्योंकि पाकिस्तान और इंग्लैंड टीम ही आमने-सामने थीं। पाकिस्तान क्रिकेट में 1992 के विश्व कप का जिक्र बड़ा ख़ास है क्योंकि पाकिस्तान ने सभी को हैरान करते हुए टाइटल जीता। तो इस तरह पाकिस्तान ने इतिहास लिखा। उस जीत के बाद क्या हुआ? विश्वास कीजिए पाकिस्तान क्रिकेट में, उसके बाद जो हुआ उसका किस्सा आज तक हो रहा है और आगे भी होता रहेगा। ये क्रिकेट का ऐसा अनोखा किस्सा है जिसमें क्रिकेट का जिक्र हमेशा एक हॉस्पिटल के साथ होगा। वह हॉस्पिटल लाहौर में है और इस किस्से को इस समय याद करने की वजह ये है कि अब वही हॉस्पिटल कराची में बन रहा है और उसके लिए फंड रेजर प्रोग्राम चल रहे हैं।
चलिए सीधे मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड चलते हैं जहां 1992 विश्व कप में पाकिस्तान की जीत के बाद, इमरान खान जीत की खुशी में माइक पर बोल रहे हैं। इमरान जो बोले, उसकी सबसे ख़ास बात ये है कि उन्होंने पाकिस्तान की जीत में, टीम के क्रिकेटरों का कोई जिक्र ही नहीं किया। क्या वे जीत के जोश में उन क्रिकेटरों को ही भूल गए थे जिन्होंने इस जीत को संभव बनाया?
और भी ख़ास बात ये थी कि उन्होंने उस शौकत खानम मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का जिक्र किया जिसे वे अपनी मां की याद में बनवा रहे थे। वे भी कैंसर की शिकार थीं। इमरान ने 1989 से ही इस प्रोजेक्ट के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया था पर इतने बड़े प्रोजेक्ट के लिए, पैसा इकट्ठा करना आसान नहीं था। इसकी तुलना में, विश्व कप जीत ने जोश जगा दिया और जीत के महज एक महीने के अंदर ही इमरान ने करीब 20 लाख डॉलर जमा कर लिए।
ये 90 के दशक की शुरुआत थी। क्रिकेट तब भी लोकप्रिय तो था पर उसमें आज जैसा पैसा नहीं था। इसलिए दो मिलियन डॉलर इकट्ठा करना कोई मजाक नहीं था पर इमरान ऐसा करने में कामयाब रहे। इसी पैसे ने, इमरान को ये तय करने पर मजबूर कर दिया था कि जब तक वे खेलेंगे, हॉस्पिटल के लिए पैसा इकट्ठा कर पाएंगे। आम सोच ये है कि जीत के बाद इमरान ने एक दम रिटायर होने का फैसला कर लिया था- ये गलत है। ब्रिटिश, इवो टेनेंट ने भी 1996 में इमरान पर अपनी किताब में यही लिखा।
पाकिस्तान टीम को 1992 समर में 5 टेस्ट के लिए इंग्लैंड जाना था और इमरान उस टूर में पैसा जुटाने की और कोशिश करना चाहते थे ताकि हॉस्पिटल प्रोजेक्ट आगे बढ़े। तब तक तो इमरान अपने खिलाड़ियों (उप कप्तान जावेद मियांदाद समेत) के बीच बेहद लोकप्रिय थे लेकिन विश्व कप के बाद हालात एक दम बदल गए। कुछ खिलाड़ी दबी आवाज में इस बात पर अपनी नाराजगी जाहिर करने लगे कि विश्व कप जीत के बाद उन्हें अमीर प्रशंसकों से जो पैसा गिफ्ट मिल रहा था- इमरान वह भी उन से डोनेशन के लिए कह रहे थे।
खिलाड़ी, विश्व कप से पहले तक तो हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के लिए खुशी-खुशी डोनेशन दे रहे थे पर विश्व कप के बाद, जब पैसा आया तो जावेद मियांदाद समेत खिलाड़ियों के एक ग्रुप ने
साफ़-साफ़ कह दिया कि अब खिलाड़ी पैसा अपने पास रखेंगे। ऐसी सोच वालों को जावेद लीड कर रहे थे- वे कराची में एक लोअर-मिडिल क्लास से क्रिकेट स्टारडम तक पहुंचे थे। और भी कई खिलाड़ी, सड़कों पर क्रिकेट खेलते हुए बड़े हुए थे और ऐसा पैसा पहली बार देख रहे थे।
उन्होंने खुशी-खुशी विश्व कप जीतने वाले बोनस के बड़े हिस्से को हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के लिए दे दिया था पर उसके बाद सोच बदल गई। उन्हीं दिनों में, कप जीतने वाली टीम का सम्मान करने के लिए सिंगापुर में पाकिस्तानियों ने एक प्रोग्राम किया और पूरी टीम को बुलाया। वहां, पहली बार जावेद साफ़-साफ़ बोले कि सिंगापुर में मिल रहा पैसा खिलाड़ी अपने पास रखेंगे- आखिरकार इस सब के लिए संघर्ष किया है और कड़ी मेहनत की।
इनमें से एक सलीम मलिक भी थे। रिकॉर्ड बताता है कि वे तो कभी भी इमरान की गुड बुक्स में नहीं थे पर इमरान ने उनकी क्रिकेट की वजह से उन्हें टीम में लेते हुए इसे नहीं सोचा। मलिक विश्व कप में नाकामयाब रहे थे पर अब जावेद से मिल गए। जब इमरान को, ये सब पता लगा और ये भी कि 6-7 और भी उनके साथ हैं तो इमरान बदलते हालात भांप गए। अब उन्हें अहसास हो गया था कि खिलाड़ी अपने हिस्से में से हॉस्पिटल के लिए कुछ नहीं देने वाले तो उन्होंने 1992 में इंग्लैंड टूर के लिए पाकिस्तान टीम में खेलने का अपना इरादा बदल दिया। उस टीम के मैनेजर इंतिखाब आलम (जिनके नेतृत्व में इमरान ने टेस्ट डेब्यू किया था और जिन्हें वह आज तक 'कप्तान' कहते हैं) चाहते थे कि इमरान इंग्लैंड टूर तक जरूर खेलें पर अप्रैल 1992 में, जब इमरान और इंतिखाब एक इंटरव्यू के लिए, एक साथ पीटीवी पर थे तो इमरान ने अचानक रिटायर होने की घोषणा कर दी।
इमरान ने बाद में माना कि उन्हें अहसास हो गया था कि खिलाड़ियों की नजर में उनका ध्यान सिर्फ हॉस्पिटल प्रोजेक्ट और उनके पैसे पर है। वे जानते थे कि साधारण इकोनॉमिक बैक ग्राउंड से आए इन खिलाड़ियों की जिंदगी मेलबोर्न में जीत के बाद पैसे और गिफ्ट से बदल रही थी। यहां तक कि इमरान की तरह, एक अच्छे शहरी परिवार से आए रमीज राजा भी इनके साथ थे। तब भी इमरान को कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि खिलाड़ियों ने विश्व कप जीत से पहले, हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के लिए धन जुटाने की हर कोशिश में, उनका साथ दिया था और जावेद मियांदाद अपनी लोकप्रियता की बदौलत चैरिटी में सबसे आगे थे।
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ये था पाकिस्तान क्रिकेट में टकराव के नए समीकरण की शुरुआत का दौर। अब भी कराची के हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के लिए पैसा इकट्ठा हो रहा है पर क्रिकेट के बिना।