कप्तान बदलने की अजीब दास्तान - तब और अब !

Updated: Thu, Jul 07 2022 08:54 IST
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एजबेस्टन टेस्ट- जसप्रीत बुमराह ने कुछ महीने पहले सोचा भी नहीं होगा कि उनका नाम टेस्ट कप्तान की लिस्ट में आ जाएगा। इस तरह 2022 में, इंटरनेशनल क्रिकेट में टीम इंडिया के कप्तान की गिनती 6 हो गई जो एक कैलेंडर साल में कप्तान की गिनती में टीम इंडिया का नया रिकॉर्ड है।अभी तो साल ख़त्म होने में कई महीने बचे हैं- तब तक तो ये गिनती भी बदल सकती है।

कप्तान बदलने की इस भारतीय दास्तान में 1959 के साल को खूब याद किया गया- तब तो टेस्ट क्रिकेट में ही 5 कप्तान बना दिए थे। 'म्यूजिकल चेयर' का खेल खेला, कप्तानी के नाम पर। तब वेस्ट इंडीज की टीम 1958-59 की सीरीज के लिए भारत आई थी और सीरीज में बड़ा मुश्किल मुकाबला था। उनके पास दो जबरदस्त तेज गेंदबाज वेस हॉल और रॉय गिलक्रिस्ट थे जबकि भारत ने तो पिछले दो साल से कोई टेस्ट नहीं खेला था।

इस सीरीज की शुरुआत ही ऐसे विवाद से हुई जो कई महीने चला। तब कप्तान बदलने के रिकॉर्ड के लिए बोर्ड और सेलेक्टर्स में आपसी कलह बहुत कुछ जिम्मेदार थी। सीरीज के

दौरान, सेलेक्टर टीम की मुश्किलों को दूर करने के बजाए आपसी कलह और एक दूसरे के विरुद्ध मीडिया में बयान देने में ज्यादा लगे हुए थे। सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन थे लाला अरमानथ और उनका गुस्सा और रुतबा दिखाने वाला मिजाज किसी से छिपा नहीं था। अपनी चलाने और रीजनल राजनीति का कार्ड खेलने में वे माहिर थे। सीरीज शुरू होने के समय का नजारा देखिए :

पहला टेस्ट था नवंबर 28,1958 से मुंबई में। सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन लाला अमरनाथ की पसंद थे 36 साल के गुलाम अहमद और जिद्द में गुलाम को कप्तान बना दिया। इसके लिए उन्होंने अपने 'कास्टिंग वोट' का इस्तेमाल किया था और बाकी सेलेक्टर्स की एक न सुनी। असल में वे अमरनाथ के पक्के दोस्त थे। इसी तरह टीम में पंकज रॉय को ओपनर के तौर पर लेने पर भी तीखा विवाद हुआ और एक बार फिर से अमरनाथ ने अपने 'कास्टिंग वोट' का सिक्का चला दिया। दूसरी तरफ खिलाड़ियों को एहसास था कि वेस्टइंडीज की मजबूत टीम के विरुद्ध चुनौती कैसी है और 'डर से' हर कोई मुकाबले से भाग रहा था।

मुंबई टेस्ट से एक हफ्ते पहले, गुलाम अहमद ने घुटने की चोट की खबर बोर्ड को भेज दी और टीम से नाम वापस ले लिया। अब अमरनाथ ने बोर्ड को सुझाव दिया कि मनोहर हार्डिकर उनकी जगह ले लें। एक तरफ अमरनाथ ये खिचड़ी पका रहे थे तो दूसरी तरफ, सेलेक्शन कमेटी में वेस्ट जोन के प्रतिनिधि, मुंबई के ही एलपी जय अपने आप फैसले लेने में लग गए- न सिर्फ लोकल स्पिनर बापू नादकर्णी को बुला लिया, ये भी घोषणा कर दी कि पॉली उमरीगर कप्तान होंगे। बापू नादकर्णी और पॉली उमरीगर- दोनों मुंबई के क्रिकेटर थे। होना तो ये चाहिए था कि उप कप्तान को कप्तान बनाते पर चूंकि किसी को भी तब तक उप कप्तान बनाया नहीं था- जय ने मुंबई में मौजूद होने का फायदा उठाकर ये फैसले ले लिए।

खैर उमरीगर की टीम ने पहला टेस्ट ड्रॉ किया। ये बड़ी राहत की बात थी। पूरे टेस्ट के दौरान, जय पवेलियन में अकेले बैठे रहे और सेलेक्शन कमेटी के बाकी सदस्य कमेटी बॉक्स में हंगामे के साथ बार-बार मीटिंग कर रहे थे। वे इस बात पर बड़े खफा थे कि जय ने अकेले ये फैसले कैसे ले लिए?

मैच के आखिर में बहरहाल, अगले टेस्ट की टीम चुनने के लिए कमेटी इकट्ठी हुई पर वहां भी आगे की बात की बजाए पिछले किस्से शुरू हो गए। झगड़ा हुआ और एडवर्ड डॉकर ने अपनी किताब में लिखा है कि लाला जी ने पंजाबी में गालियां दीं। इस पर, कुछ ही मिनटों में जय मीटिंग से बाहर चले गए। बाद में उन्होंने, बोर्ड से, अमरनाथ के अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने की शिकायत की। उधर लोकल मीडिया ने इसे रीजनल रंग दे दिया और इसे अमरनाथ का 'बॉम्बे विरोधी' व्यवहार घोषित कर दिया। भारतीय क्रिकेट तब अलग-अलग लॉबी में बंटी हुई थी।

जय इस गुस्से में सेलेक्शन कमेटी मीटिंग का बॉयकॉट करते रहे पर कमेटी से इस्तीफा भी नहीं दिया। इससे लाला जी के लिए फैसले लेना आसान हो गया और फिट गुलाम अहमद दूसरे टेस्ट के लिए कप्तान बनकर लौट आए। तो इस तरह कप्तान बदल गया और यहीं से बार-बार कप्तान बदलने का वह तमाशा शुरू हुआ कि आखिर में भारत ने 6 टेस्ट में 5 कप्तान और 7 टेस्ट में 6 कप्तान (विरुद्ध वेस्ट इंडीज 1958-59 : पहला टेस्ट, मुंबई- पॉली उमरीगर ; दूसरा टेस्ट, कानपुर और तीसरा टेस्ट, कोलकाता- गुलाम अहमद ; चौथा टेस्ट, मद्रास- वीनू मांकड़ ; पांचवां टेस्ट, दिल्ली- हेमू अधिकारी। विरुद्ध इंग्लैंड 1959 : पहला टेस्ट, ट्रेंट ब्रिज -दत्ता गायकवाड़ ; दूसरा टेस्ट, लॉर्ड्स- पंकज रॉय) का रिकॉर्ड बनाया।

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