2003 वर्ल्ड कप के फाइनल में सौरव गांगुली का वो फैसला, जो टीम इंडिया पर भारी पड़ा

Updated: Sat, Oct 21 2023 11:26 IST
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सच ये है कि 2003 वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया अकेली ऐसी टीम थी जो सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) की टीम पर भारी पड़ी और फाइनल से पहले टीम इंडिया, इसी ऑस्ट्रेलिया से लीग मैच में हारी थी। तब भी ये मानने वालों की कमी नहीं कि वह बड़ा मैच (फाइनल) तो भारत, वास्तव में मैच शुरू होने से पहले ही हार गया था- कैसे?

वह 23 मार्च 2003 का दिन था। जोहान्सबर्ग स्टेडियम में शोर के बीच मैच रेफरी रंजन मदुगले ने कहा- टेल्स और सौरव गांगुली के पास ये तय करने का मौका था कि क्या करना है? ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध ग्रुप स्टेज मैच गांगुली के जहन में था (सेंचुरियन में- पहले बैटिंग और भारत 125 रन पर आउट) और वे ये भी भूल गए कि लगातार 8 मैच जीते और फाइनल में पहुंचे थे। 'सौरव आपने टॉस जीत लिया है। आप क्या कर रहे हो अब?' कमेंटेटर माइकल होल्डिंग ने पूछा और गांगुली ने फील्डिंग को चुना। वजह जो गांगुली ने बताई- सुबह की बारिश से पिच नम है और तेज़ गेंदबाजों को मदद मिलेगी। गांगुली ने 'बैट' नहीं कहा पर रिकी पोंटिंग का कहना था कि वे टॉस जीतते तो भी बैटिंग ही चुनते।  

भारत इस फाइनल में 360 के लक्ष्य को हासिल करने में बुरी तरह नाकाम रहा और सौरव गांगुली के उस अजीब फैसले की कीमत भारत ने चुकाई। ये 2003 आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप उस युग में खेला गया था जब एक टीम क्रिकेट पर हावी थी और ऐसा माहौल था मानो ऑस्ट्रेलिया एक तरफ और बाकी की क्रिकेट की दुनिया दूसरी तरफ। ऑस्ट्रेलिया की टीम अपने सभी मैच जीतकर फाइनल में आई थी। तब भी, उम्मीद थी कि भारत, ऑस्ट्रेलिया को झटका देगा और किस्मत ने तो टॉस के साथ गांगुली को इसे चमकाने का मौका भी दे दिया था। 

जहीर खान के पहले ओवर में 15 रन गए और ओपनर मैथ्यू हेडन (37) और एडम गिलक्रिस्ट (57) ने 105 रन जोड़े। रिकी पोंटिंग (140*) और डेमियन मार्टिन (88) ने तीसरे विकेट की 234 रन की पार्टनरशिप से तो भारत को मुकाबले से बाहर ही कर दिया- 50 ओवर में 2/359 का विशाल स्कोर। जवाब में मैक्ग्रा ने तेंदुलकर को 4 रन पर आउट कर भारत को करारा झटका दिया। उस समय जो बारिश आई वह किसी रेन डांस की तरह लगी और बात होने लगी कि रिजर्व डे पर एक नई शुरुआत होगी। ऐसा नहीं हुआ। बारिश रुकी और वीरेंद्र सहवाग ने 82 रन बनाए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भारत 125 रन से हार गया और ऑस्ट्रेलिया ने तीसरी बार वर्ल्ड कप जीता।

वर्ल्ड कप फाइनल में गेंदबाजी का गांगुली का फैसला लगभग वैसा ही था जैसा ब्रिस्बेन में नासिर हुसैन की टीम ने एशेज 2002 में किया- टॉस जीतने के बाद सबसे गलत फैसले में से एक। 20 साल से ज्यादा हो गए पर ये फैसला अभी भी परेशान करता है। 1996 में भी तो यही हुआ था- तब मोहम्मद अज़हरुद्दीन ने श्रीलंका के विरुद्ध सेमीफाइनल में ये सोचकर गेंदबाजी को चुना कि श्रीलंका लक्ष्य का पीछा करने में बेहतर है। भारत वहां भी हारा था। किसने कहा- टॉस जीतना हमेशा फायदेमंद रहता है?

आज सवाल ये है कि क्या गांगुली उस फाइनल में कुछ अलग कर सकते थे? ऑस्ट्रेलिया,तब वनडे की टॉप टीम और दूसरी टीम को बड़ा टारगेट देने में माहिर। 1998-2001 के बीच, पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने भी यही खूबी दिखाई थी पर सच ये है और विजडन ने भी लिखा कि यह टीम (शेन वार्न के बिना भी) रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड इलेवन को हरा देती। 

जहीर खान के शुरुआती ओवर में 15 रन और गांगुली जिन दो विकेट की उम्मीद कर रहे थे, वे 20वें ओवर तक नहीं मिले- नतीजा ऑस्ट्रेलिया 125/2 और यहां से पोंटिंग-मार्टिन पार्टनरशिप शुरू हो गई। पोंटिंग- 74 गेंद पर पहले 50, अगली 29 गेंद पर दूसरा 50 और 121 गेंद पर 140 रन। भारतीय गेंदबाजी लाइनअप जो फाइनल से पहले तक कमाल कर चुकी थी- बुरी तरह टूट गई और सीनियर  श्रीनाथ ने 87 रन दिए। इसके बाद वे कभी वनडे नहीं खेले। 

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ऐसा नहीं कि भारत पहले बल्लेबाजी करता तो टाइटल जीतना गारंटी था। क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है पर जो हुआ उससे तो ख़राब कुछ न होता।
 

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