टीम इंडिया का वो क्रिकेटर जिसने टेस्ट क्रिकेट खेलने की उम्मीद में ओलंपिक गोल्ड को छोड़ा, भारत के लिए क्रिकेट औऱ हॉकी दोनों खेले

Updated: Tue, Aug 20 2024 11:58 IST
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ऐसा नहीं कि ओलंपिक में क्रिकेट की चर्चा नहीं होती। कई खिलाड़ी न सिर्फ क्रिकेट के साथ, अपने देश के लिए किसी और खेल में भी खेले- ओलंपिक में भी हिस्सा लिया। जब भी ओलंपिक और क्रिकेट दोनों से जुड़े खिलाड़ियों का जिक्र होता है- भारत से एमजे गोपालन (MJ Gopalan) का नाम लिया जाता है। बहुत सी ऐसी ख़ास बातें हैं जो इस जिक्र में मालूम ही नहीं हैं और इतिहास के उन पेजों पर समय की धूल की परत और मोटी होती जा रही है। 

जब 21 दिसंबर 2003 के दिन 94 साल 198 दिन की उम्र (इस पर भी उनके जन्म का साल गलत लिखा होने से विवाद है पर ये एक अलग स्टोरी है) में उन का चेन्नई में देहांत हुआ तो ये लिखा गया था कि भारतीय खेल के इतिहास के एक बेहद चर्चित चेप्टर का अंत हो गया। बात ओलंपिक की हो रही है तो उनके साथ जुड़ी सबसे बड़ी स्टोरी ये है कि वे क्रिकेट और हॉकी दोनों में बहुत बेहतर थे और दोनों साथ-साथ खेलते भी रहे। 1936 में एक मुकाम ऐसा आया जब उन्हें क्रिकेट और हॉकी में से किसी एक को चुनना था तारीखों के टकराव की वजह से। 

1936 में विजी की कप्तानी में भारत की टीम इंग्लैंड टूर पर गई 3 टेस्ट की सीरीज खेलने और ये टूर चला 29 अप्रैल से 15 सितंबर तक। गोपालन उससे पहले टेस्ट डेब्यू कर चुके थे- जनवरी 1934 में इंग्लैंड के विरुद्ध ईडन गार्डन्स में। 1936 इंग्लैंड टूर की टीम में भी वे थे। उसी साल बर्लिन में ओलंपिक थे और भारत तब हॉकी में नंबर 1 टीम था और गोपालन हॉकी में भी भारत के लिए खेल चुके थे। ओलंपिक खेल थे 1 से 16 अगस्त तक और इस तरह गोपालन इंग्लैंड के टेस्ट टूर और ओलंपिक में से किसी एक में हिस्सा ले सकते थे। गोपालन ने तब क्रिकेट को चुना। 

इस स्टोरी में कई ख़ास बातें हैं जिनका जिक्र नहीं होता। जो दो खेल खेलते हैं- उन में से हर एक के सामने, करियर के दौरान,  एक समय दोनों खेल में से एक को चुनने का सवाल आता ही है। गोपालन दाएं हाथ के बल्लेबाज और फास्ट- मीडियम गेंदबाज थे। फील्ड-हॉकी में एक बेहद प्रतिभाशाली सेंटर-फॉरवर्ड थे। उस दौर में कई इंग्लिश क्रिकेटर भारत में घरेलू मैचों में खेलते थे और सभी ने गोपालन की तारीफ की। एक ख़ास रिकॉर्ड- जब 1934 में रणजी ट्रॉफी शुरू हुई तो इसमें पहली गेंद गोपालन ने ही फेंकी थी। रिकॉर्ड : 78 फर्स्ट क्लास मैच में, एक 100 के साथ 2916 रन और 194 विकेट। चाह थी दोनों खेल खेलें- सुबह क्रिकेट नेट्स पर तो शाम को हॉकी फील्ड में प्रैक्टिस करते थे। भारतीय हॉकी टीम के साथ सीलोन (श्रीलंका), ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड टूर पर भी गए और टूर के 48 में से 39 मैच में गोल किए। 

 

अब आया 1936 का साल। सबसे पहले क्रिकेट के इंग्लैंड टूर की टीम में चयन हुआ और लगभग उसी दौरान ओलंपिक की तैयारी के नेशनल कैंप (कई जगह इसे टीम चयन के लिए ट्रायल्स भी लिखा है) के लिए भी चुन लिया। कई जगह ये गलत लिखा है कि उन्हें ओलंपिक की टीम में चुन लिया था और तब उन्होंने क्रिकेट टूर को चुना। सच ये है कि उन्होंने क्रिकेट टूर को चुना और वे इसीलिए उस नेशनल कैंप में भी नहीं गए। भारत की एक मशहूर खेल पत्रिका 'स्पोर्ट्स एंड पासटाइम (Sport and Pastime) में अपने एक आर्टिकल में गोपालन ने खुद ये बात लिखी। ।  

उस समय की एक स्टोरी। तब भारत में एक बड़े बेहतरीन और होशियार खेल अधिकारी थे पंकज गुप्ता। क्रिकेट में कई जगह उन का जिक्र मिलता है पर वे दिल से भारत को खेलों में आगे बढ़ाने के ऐसे दीवाने थे कि हर खेल की मदद के लिए तैयार। उस दौर में महाराजा पटियाला न सिर्फ क्रिकेट, अन्य दूसरे खेलों की भी मदद करते थे। बर्लिन ओलंपिक की हॉकी टीम का खर्चा भी वे ही उठा रहे थे और उन्हीं के कहने पर कई महीने पहले से पंकज गुप्ता को क्रिकेट की ड्यूटी से हटा कर, हॉकी टीम के साथ जोड़ दिया था। 

वे चाहते थे कि भारत की नंबर 1 हॉकी टीम ओलंपिक में जाए और गोल्ड जीते क्योंकि उन दिनों में हिटलर को जवाब देने जैसे किस्से बड़ी चर्चा में थे। जब पंकज गुप्ता को ये पता चला कि गोपालन ने क्रिकेट टूर को चुन लिया है और हॉकी कैंप में भी नहीं आ रहे तो वे गोपालन को राजी करने खुद मद्रास गए। चूंकि पंकज गुप्ता क्रिकेट से भी जुड़े थे इसलिए उन्हें अंदाजा था कि क्रिकेट टीम में मोहम्मद निसार और अमर सिंह जैसे बेहतरीन गेंदबाजों की मौजूदगी के कारण गोपालन को टूर में खेलने के ज़्यादा मौके नहीं मिलेंगे (टेस्ट तो बिलकुल ही नहीं) और तब भी उम्मीद में, गोपालन ने क्रिकेट को चुन लिया था। पंकज गुप्ता ने गोपालन से कहा- 'गोपाला हमारे साथ बर्लिन चलो। वहां तुम्हें पक्का गोल्ड मेडल मिलेगा।' बस यहीं गोपालन का ओलंपिक कनेक्शन खत्म हो गया। 

जो पंकज गुप्ता ने अंदाजा लगाया था वही हुआ- गोपालन सिर्फ कुछ ही टूर मैच खेले और टेस्ट तो एक भी नहीं। उधर भारतीय हॉकी टीम ने बर्लिन ओलंपिक में अपना दबदबा साबित किया और अपना लगातार तीसरा गोल्ड जीतकर लौटे। गोपालन का दुर्भाग्य देखिए- इस टूर के बाद कभी भारत की टीम में नहीं चुने गए और उन क्रिकेटर में से एक बन कर रह गए जिनका टेस्ट करियर सिर्फ एक टेस्ट का है। तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच कई साल खेले गए सालाना मैच के लिए गोपालन ट्रॉफी उन्हीं के नाम पर है।

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उधर हॉकी के जादूगर के तौर पर मशहूर ध्यानचंद की बायोग्राफी 'गोल' में उनके बारे में लिखा है- 'मैंने पहले सोचा था कि हॉकी उनका दूसरा प्यार है और क्रिकेट पहला, पर ऐसा नहीं था।' और एक बड़ी मजेदार बात ध्यानचंद ने गोपालन की धार्मिक मान्यता के बारे में लिखी- 'जब टीम न्यूजीलैंड टूर से लौटी तो गोपालन कहते थे कि उनसे समुद्र पार करने का पाप हो गया है। इसलिए वे मद्रास में टीम से छुट्टी लेकर अकेले पवित्र जल में डुबकी लगाने रामेश्वरम गए और अगले दिन वापस टीम में मद्रास में शामिल हो गए।'
 

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