1975 वर्ल्ड कप की वो टीम, जो उस टूर्नामेंट के बाद हमेशा के लिए गायब हो गई

Updated: Wed, Oct 04 2023 16:59 IST
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अब तक 20 टीम क्रिकेट वर्ल्ड कप में खेली हैं- इनमें से 3 ने सिर्फ एक वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया। ये ईस्ट अफ्रीका, बरमूडा और नामीबिया हैं। इन 20 में से सिर्फ एक टीम ऐसी है जिसका आज कोई अस्तित्व नहीं और ये ईस्ट अफ़्रीका (East Africa Cricket Team) है। इस नाम का कोई देश नहीं, इस टीम का वर्ल्ड कप में खेलना, अपने आप में वर्ल्ड कप की सबसे चर्चित पहेली में से एक है। यहां तक कि वर्ल्ड कप जैसा टूर्नामेंट खेलने के बावजूद इनके बारे में, आज पूरी जानकारी तक नहीं है। 

आम तौर पर लिखा जाता है कि ये क्रिकेट टीम 1975 वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए बनाई- ये गलत है। केन्या, युगांडा, तंजानिया और जाम्बिया- इन 4 देश के क्रिकेटर मिलकर एक क्रिकेट टीम के तौर पर खेलते थे और इसका नाम था ईस्ट अफ़्रीका।1951 में अपना अलग बोर्ड बनाया, 1956 में पाकिस्तान और 1958 में दक्षिण अफ्रीका इलेवन के विरुद्ध खेले। इसी तरह और मैच भी खेले।1966 से 1989 तक आईसीसी के एसोसिएट सदस्य रहे- उसके बाद इनकी जगह ईस्ट एंड सेंट्रल अफ्रीका सदस्य बन गए।

1975 में पहले क्रिकेट वर्ल्ड कप में खेलना इस टीम के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि था। मेजबान इंग्लैंड, भारत और न्यूजीलैंड के साथ एक ग्रुप में थे- इन तीनों टीम से मैच हार गए और उनके लिए यहीं वर्ल्ड कप खत्म हो गया। अब सबसे पहला सवाल तो ये है कि वे इस वर्ल्ड कप में खेले कैसे? 1975 वर्ल्ड कप के समय 7 टेस्ट टीम थीं- इनमें से सिर्फ दक्षिण अफ्रीका को वर्ल्ड कप खेलने का न्यौता आईसीसी ने नहीं दिया था। रोडेशिया पर भी प्रतिबंध था। श्रीलंका उस समय टेस्ट न खेलने वाली टॉप टीम थी- इसलिए उन्हें बुला लिया। अब 7 टीम से सही प्रोग्राम नहीं बन रहा था और 2 ग्रुप बनाने के लिए कम से कम 8 टीम की जरूरत थी- इसलिए उस समय की एकमात्र अन्य चर्चित टीम ईस्ट अफ्रीका को बुला लिया। 
वे चर्चा में इसलिए थे क्योंकि जून-जुलाई 1972 में इंग्लैंड टूर में काउंटी टीमों के विरुद्ध 18 मैच खेले- इनमें से नॉर्थ वेल्स के विरुद्ध 6 विकेट से जीत भी हासिल की। एमसीसी टीम 1973-74 में ईस्ट अफ्रीका गई- जाम्बिया और तंजानिया में 2-2 और केन्या में 4 मैच खेले। इस तरह इंग्लैंड में ये टीम ज्यादा चर्चा में थी और इसीलिए उन्हें बुला लिया। ऑफिशियल दलील ये थे कि चूंकि ये 'वर्ल्ड' टूर्नामेंट है- इसलिए ये टीम अफ्रीका रीजन का प्रतिनिधित्व करेगी। और तो और- सच ये है कि टीम सेलेक्शन में भी आईसीसी के कहने पर इंग्लैंड ने उनकी मदद की थी। 4 अलग़-अलग़ देश के खिलाड़ी जो साथ-साथ बहुत कम खेलते थे- मिलकर वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में खेलने के लिए तैयार थे।  पैसा था नहीं इसलिए तैयारी के नाम पर कुछ ख़ास नहीं किया। 

अभी ये सब चल रहा था कि तंजानिया ने पहला झटका दिया- 1974 में ब्रिटिश और आयरिश लायंस रग्बी टीम के दक्षिण अफ्रीका टूर पर जाने (जिसे क्रिकेट खेलने से उनकी रेशियल पॉलिसी की वजह से रोका हुआ था) के विरोध में अपने खिलाड़ियों को इंग्लैंड में खेलने से रोकने की धमकी दे दी। वर्ल्ड कप के बाद सबसे पहले केन्या अलग हुआ और वे अलग से आईसीसी सदस्य बने। 1989 में, ईस्ट-सेंट्रल अफ्रीका टीम बनी युगांडा, तंजानिया, जाम्बिया और मलावी के मिलने से। 1975 वर्ल्ड कप की कामयाबी के बाद आईसीसी ने वर्ल्ड कप की संरचना ही बदल दी और दूसरी तरफ ये देश भी अलग-अलग क्रिकेट टीम बनाकर खेलने लगे।  

1975 वर्ल्ड कप में ईस्ट अफ्रीका की जो टीम खेली उसमें सबसे बड़ी उम्र के खिलाड़ी 43 साल के डॉन प्रिंगल थे। उनका बेटा डेरेक बाद में इंग्लैंड के लिए खेलने लगा। टीम के कप्तान थे केन्या के हरिलाल शाह। एजबेस्टन में न्यूजीलैंड के विरुद्ध पहला मैच- ग्लेन टर्नर के 171(उस समय सबसे बड़ा वनडे स्कोर) से 60 ओवर में 309/5 का स्कोर और न्यूजीलैंड ने 181 रन से जीत हासिल की। हेडिंग्ले में भारत के विरुद्ध 120 रन पर आउट तथा 10 विकेट से हारे जबकि एजबेस्टन में इंग्लैंड के विरुद्ध 291 के लक्ष्य का पीछा करते हुए सिर्फ 94 रन बना सके।

कितनी हैरानी की बात है कि ये टीम वर्ल्ड कप खेली और किसी ने इस टीम का रिकॉर्ड रखने की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। आज ये तक नहीं मालूम कि इस वर्ल्ड कप टीम ने अपने ब्लेज़र पर किस क्रेस्ट का उपयोग किया था? क्या उनके पास कोई झंडा था? जब वर्ल्ड कप की हिस्ट्री लिखने की ऑफिशियल कोशिश शुरू हुई आईसीसी में तो ये सवाल उठे। रास्ता निकाला कि फोटो से मालूम हो जाएगा।  

एजबेस्टन में टीम का ग्रुप फोटो मिला और संयोग से खिलाड़ी टीम ब्लेज़र में हैं पर ब्लेज़र बैज कतई साफ़ नहीं- ऐसा लगता है जैसे अफ्रीका के नक़्शे की आउटलाइन पर केन्या, युगांडा, तंजानिया और जाम्बिया के नेशनल बर्ड को चित्रित किया है।

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डेरेक प्रिंगल से पूछा कि क्या उनके पिता ने कभी इस बारे में कुछ बताया पर वहां से भी कोई मदद नहीं मिली। झंडे के मामले में तो ये भी नहीं मालूम कि टीम के पास कोई झंडा था भी? अब आप आसानी से कह सकते हैं कि इस टीम का खेलना एक रहस्य की तरह है। टीम के दो खिलाड़ियों हामिश मैकलियड और प्रफुल्ल मेहता के बारे में कोई जानकारी नहीं है और अन्य चार (शिराज सुमार, सैम वालुसिंबी, यूनुस बदात और जुल्फिकार अली) के तो सिर्फ जन्म के साल मालूम हैं। भारत में जन्मे पीजी नाना की जन्म की तारीख पर मतभेद है तो मौत एक रहस्य बनी हुई है। टीम आई, खेली और खिलाड़ी बिखर गए- ये तक नहीं मालूम कि वे सब हैं कहां? इससे ख़राब और क्या होगा?
 

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