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खस्ता हाल जूते जो हर इनिंग के बाद सिलवाने पड़े- उन्हें पहनकर  टीम इंडिया के लिए टेस्ट डेब्यू किया था इस पेसर ने 

आशीष नेहरा (Ashish Nehra) की आजकल मशहूरी एक कामयाब आईपीएल कोच के तौर पर है पर ऐसे में ये नहीं भूल सकते कि वे एक क्लासिक खब्बू तेज गेंदबाज थे जिनके लेट इनस्विंगर ने दुनिया भर के बल्लेबाज को परेशान

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खस्ता हाल जूते जो हर इनिंग के बाद सिलवाने पड़े- उन्हें पहनकर  टीम इंडिया के लिए टेस्ट डेब्यू किया था
खस्ता हाल जूते जो हर इनिंग के बाद सिलवाने पड़े- उन्हें पहनकर  टीम इंडिया के लिए टेस्ट डेब्यू किया था (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Aug 10, 2024 • 08:40 AM

आशीष नेहरा (Ashish Nehra) की आजकल मशहूरी एक कामयाब आईपीएल कोच के तौर पर है पर ऐसे में ये नहीं भूल सकते कि वे एक क्लासिक खब्बू तेज गेंदबाज थे जिनके लेट इनस्विंगर ने दुनिया भर के बल्लेबाज को परेशान किया। टेस्ट क्रिकेट करियर तो लगभग 5 साल ही चला पर टी20 ने उनके करियर को गजब की लाइफ लाइन दी- अपना आखिरी टेस्ट खेलने के लगभग 5 साल बाद पहला टी20 इंटरनेशनल खेले और अगले 8 साल तक खेलते रहे। इस चक्कर में उनके टेस्ट करियर की यादें कुछ धूमिल पड़ गईं पर इसमें भी बहुत कुछ खास है जैसे कि उनका टेस्ट डेब्यू। 

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
August 10, 2024 • 08:40 AM

इसकी स्टोरी सिर्फ ये नहीं है कि आशीष नेहरा ने फरवरी 1999 में टेस्ट डेब्यू किया और एमएसके प्रसाद नाम के एक और क्रिकेटर ने अक्टूबर 1999 में। ये एमएसके प्रसाद इंटरनेशनल खेल कर रिटायर भी हो गए और मजे के बात है कि एक वक्त ऐसा भी आया जब एमएसके प्रसाद की सेलेक्शन कमेटी ने अक्टूबर 2017 में आशीष नेहरा को टी20 टीम इंडिया में चुना!

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टेस्ट डेब्यू पर लौटते हैं। ये 1999 की बात है। तब एशियाई टेस्ट चैंपियनशिप खेलते थे। फरवरी में इस चैंपियनशिप के पहले टेस्ट में पाकिस्तान ने ईडन गार्डन्स में एक विवादास्पद टेस्ट में भारत के विरुद्ध जीत दर्ज की। इस हार ने कप्तान अज़हरूद्दीन पर दबाव बना दिया था और जब चैंपियनशिप के कोलंबो में दूसरे टेस्ट के लिए टीम चुनने के लिए मीटिंग हुई तो उसमें अजहरुद्दीन ने दिल्ली के 20 साल के आशीष नेहरा के नाम की बात की थी। कोई ख़ास चर्चा नहीं थी तब तक आशीष नेहरा की। इसलिए सेलेक्टर ये नाम सुनकर हैरान थे। रणजी ट्रॉफी में अज़हर ने उन्हें देखा था और सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उन के एटिट्यूड से। 

एकदम नोटिस गया आशीष नेहरा को और इतना समय भी नहीं मिला कि कोई ख़ास तैयारी करते। तब आज जैसे स्पांसर नहीं थे कि टेस्ट खेलने वाले क्रिकेटर के लिए बेहतर किट और जूते एकदम जुटा दें। रणजी ट्रॉफी खेलने वाले तो वैसे भी बेहतर सामान और ख़ास तौर पर जूते जुटाने में तब 'गरीब' ही होते थे। अच्छे दर्जे के जूते एक 'लक्जरी' समझे जाते थे। आशीष नेहरा के पास भी एक ही जोड़ी थी जूते की जिन्हें पहनकर रणजी खेल रहे थे और जो खस्ता हालत में थे। उन्हीं को लेकर चल दिए टेस्ट खेलने। 

उन्हें शायद ये भरोसा नहीं था कि प्लेइंग इलेवन में भी नाम आ जाएगा इसलिए बेहतर जूते जुटाने की कोई ख़ास कोशिश भी नहीं की। टेस्ट की सुबह कप्तान ने आशीष नेहरा से कहा- तुम टेस्ट खेल रहे हो। चमकते कपड़ों के नीचे आशीष नेहरा ने उसी खस्ता हाल जूते के साथ टेस्ट खेला पर ये सब इतना आसान नहीं था। किसी को पता नहीं चला कि अपना डेब्यू टेस्ट खेल रहे इस पेसर की क्या हालत थी?

वे हर इनिंग के बाद जूते सिलवा रहे थे और तभी इस जूते के साथ पूरा टेस्ट खेल पाए। क्रिकेट गियरहेड्स का खेल है- बैट, गेंद, हेलमेट, पैड, अलग़-अलग हिस्से के गार्ड, ग्लव्स  और चमकीले धूप के चश्मे से भी ज्यादा जिस एक सामान को क्रिकेटर अपने शुरुआती खेल के दिनों से सबसे ज्यादा प्यार से याद करते हैं, वह हैं जूते। कई स्टोरी हैं जब सीनियर से जूते उधार मांग कर खेले पर आशीष नेहरा ने अपने टेस्ट डेब्यू पर जो जूते उनके पास थे, वही पहने। उन्हें आज भी याद है कि ये रीबॉक के जूते थे। 

आजकल आप सोच भी नहीं सकते कि कोई टेस्ट खेल रहा खिलाड़ी, टेस्ट के बीच स्टेडियम से बाहर जा रहा हो अपने जूते सिलाने। आशीष नेहरा की किस्मत अच्छी थी कि कोलंबो के सिंहली स्पोर्ट्स क्लब क्रिकेट ग्राउंड (Singhalese Sports Club Cricket Ground) के बाहर एक मोची बैठता था। दिन का खेल खत्म होने पर उसे जूते देते थे फटाफट सिलने के लिए। आशीष नेहरा को याद है कि उन्होंने उसे ये नहीं बताया कि उनके पास सिर्फ यही एक जोड़ी है! तब भी, टेस्ट में श्रीलंका की इनिंग के दौरान, आखिरी कुछ ओवर फेंकते हुए तो हालत ये हो गई थी कि जूते से मरम्मत के लिए लगाईं कीलें निकलनी शुरू हो गई थीं। 

वह जूते उस टेस्ट के बाद आशीष नेहरा ने कभी नहीं पहने। अपने डेब्यू टेस्ट में आशीष नेहरा ने एक विकेट लिया। सपाट पिच पर बल्लेबाजों के दबदबे के साथ ये टेस्ट एक बोरियत वाला ड्रॉ रहा।

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-चरनपाल सिंह सोबती
 

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