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विराट कोहली वाला जज्बा: पिता का शव घर में और बेटा टीम को फॉलोऑन से बचाने सुबह स्टेडियम पहुंच गया

बड़ोदा के क्रिकेटर विष्णु सोलंकी (Vishnu Solanki) के साथ पिछले कुछ दिनों में जो हुआ वह बड़ा दुखदाई था- पहले नई जन्मी बेटी और फिर पिता को खोया। इन दोनों घटनाओं के बीच रणजी ट्रॉफी मैच।  नवजात बच्ची की जन्म

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Baroda player Vishnu Solanki plays on despite death of his father and daughter 
Baroda player Vishnu Solanki plays on despite death of his father and daughter  (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Mar 02, 2022 • 08:00 PM

बड़ोदा के क्रिकेटर विष्णु सोलंकी (Vishnu Solanki) के साथ पिछले कुछ दिनों में जो हुआ वह बड़ा दुखदाई था- पहले नई जन्मी बेटी और फिर पिता को खोया। इन दोनों घटनाओं के बीच रणजी ट्रॉफी मैच।  नवजात बच्ची की जन्म के एक दिन बाद ही मृत्यु हो गई। इस दुःख से बाहर आ रहे थे कि पिता का देहांत- विष्णु तब कटक के विकास क्रिकेट ग्राउंड में रणजी ट्रॉफी मैच खेल रहे थे।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
March 02, 2022 • 08:00 PM

खेल के बीच टीम के मैनेजर ने ड्रेसिंग रूम में बुला लिया, खबर दी और कहा वापस बड़ोदा जाना चाहते हैं तो फौरन निकल जाएं। पिता के शव को ज्यादा देर तक मुर्दाघर में नहीं रखा जा सकता था- विष्णु ने ड्रेसिंग रूम के एक कोने में अपने पिता का अंतिम संस्कार वीडियो कॉल पर देखा। यह सब बड़ा मुश्किल था। इस घटना के बाद, उनकी हिम्मत की तारीफ हुई और सही हुई। ऐसे में खेलने के बारे में कौन सोचता है? विष्णु अगले मैच के लिए भी टीम के साथ रुके रहे।  

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ऐसे संदर्भ में किसी एक घटना की तुलना, किसी दूसरी घटना से करना सही नहीं होगा क्योंकि हर दुःख बड़ा है पर जिक्र जरूरी है। उस क्रिकेटर के बारे में सोचिए जो अपने शहर में रणजी मैच खेल रहा था। इसलिए मैच के बीच घर पर था। पिता का देर रात देहांत हो गया। शव घर में रखा था पर वह क्रिकेटर अगले दिन टीम को संभालने स्टेडियम पहुंच गया। वास्तव में ऐसी ही पारी खेली। उसके बाद, पिता के दाह संस्कार में शामिल हुआ। इस क्रिकेटर का नाम विराट कोहली है पर ये घटना तब की है जब वे जूनियर से सीनियर क्रिकेट का दरवाजा खटखटा रहे थे।  
लगभग 18 साल की उम्र में नवंबर 2006 में अपना रणजी ट्रॉफी डेब्यू किया- तमिलनाडु के विरुद्ध। अगला मैच दिसंबर 2006 में कर्नाटक के विरुद्ध फिरोजशाह कोटला में। कर्नाटक ने 446 रन बनाए। जवाब में दूसरे दिन दिल्ली का स्कोर एक समय 59-5 और ये 103-5 पर पहुंचा पर फॉलोऑन का ख़तरा अभी भी सामने था- क्रीज पर मौजूद थे विराट कोहली (40*) और पुनीत बिष्ट।

उसी रात विराट के पिता, प्रेम कोहली का देहांत हो गया। शव घर में था और विराट अगली सुबह स्टेडियम में थे टीम को फॉलोऑन से बचाने। ये आसान नहीं था। 19 साल के भी नहीं थे तब। 90 रन बनाए। टीम ने 308 बनाकर फॉलोऑन बचाया। ये उस पिता का शव था जिनके लाडले थे 'चीकू' विराट। स्कूटर पर क्रिकेट कोचिंग के लिए वे ही ले जाते थे। क्रिकेट खेली तो यही कहा कि पिता का सपना पूरा कर रहें हैं। और देखिए- मां को इस बात की निराशा थी कि विराट ने सेंचुरी नहीं बनाई। रिकॉर्ड में दर्ज़ है कि उन्हें गलत आउट दिया गया। मां ने 2008 में एक इंटरव्यू में कहा- 'उस एक रात ने विराट को एकदम बदल दिया- एकदम बड़ा कर दिया। वह अपनी क्रिकेट को बड़ी मेहनत से खेलने लगा। पिता का सपना जो पूरा करना था।' 

क्या विराट ने खुद ये सब सोचा और फैसला लिया? विराट को बचपन में कई कोच से कोचिंग मिली होगी पर जिस कोच को उनके पहले कोच का दर्जा मिला वे राज कुमार शर्मा थे। विराट ने उस रात उन्हें फ़ोन किया- ये पूछने कि क्या करें? राज कुमार शर्मा तब भारत से बाहर थे। उन्होंने खुद कुछ बताने से पहले विराट से पूछा कि वे क्या करना चाहते हैं? विराट का जवाब था- 'मैं खेलना चाहता हूं।' कोच ने कहा- जाओ और खेलो। देर से नहीं- सुबह ही वे स्टेडियम में थे। टीम को खबर मिल चुकी थी देहांत की पर कोई नहीं जानता था कि विराट ने क्या फैसला किया 
है?

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ऐसी हिम्मत हमेशा के लिए यादगार बन जाती है। 
 

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