रोहित शर्मा की फीस माफ की और शार्दुल ठाकुर को अपने घर में रखा- ऐसे कोच जिन्होंने दुनिया को दिए कई महान क्रिकेटर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने कुछ दिन पहले, नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में दिनेश लाड (Dinesh Lad) को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया- क्रिकेट में कोच के तौर पर योगदान के लिए। उनका सबसे बड़ा और...
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने कुछ दिन पहले, नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में दिनेश लाड (Dinesh Lad) को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया- क्रिकेट में कोच के तौर पर योगदान के लिए। उनका सबसे बड़ा और आसान परिचय- रोहित शर्मा (Rohit Sharma) और शार्दुल ठाकुर (Shardul Thakur) समेत कई क्रिकेटरों के कोच। सबसे बड़ी खासियत ये कि कोई कोचिंग फीस नहीं ली। यहां तक कि 'आउट ऑफ द वे' मदद भी करते हैं।
लाड ने भारत को दिए रोहित और शार्दुल जैसे क्रिकेटर
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रोहित शर्मा, जिस स्वामी विवेकानंद स्कूल में पढ़ते हुए अपनी क्रिकेट को निखार पाए- वास्तव में वहां पढ़ नहीं पाते क्योंकि लगभग 300 रुपये महीने की फीस रोहित के उन चाचा के लिए बहुत ज्यादा थी- जिनके पास वे रहते थे। ऐसे में दिनेश लाड ने उनकी फीस माफ़ करा दी। शार्दुल ठाकुर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है- उन्हें अपने घर में ही रख लिया ताकि वे हर रोज कई घंटे (लगभग 6), कोचिंग के लिए ट्रेन के सफर में खराब न करें। इस सब के बावजूद कभी ये दावा नहीं किया कि उन्होंने रोहित शर्मा/शार्दुल का करियर बनाया। ऐसे कोच कहां मिलते हैं?
क्रिकेट में, अविभाजित भारत में ऐसे ही एक और कोच की मिसाल मौजूद है पर हैरानी की बात है कि उनकी स्टोरी पर समय की धूल पड़ गई और किसी को भी उनके बारे में जानकारी नहीं या याद करना नहीं चाहते। ये उस दौर का किस्सा है जब देश एक ही था और टुकड़े होने की लाइन नहीं खिंची थी।
मुस्लिम परिवार ने निखारा था लाला अमरनाथ का क्रिकेट
पाकिस्तान ने अपना पहला टेस्ट भारत के ही विरुद्ध खेला 1952-53 सीरीज में और कप्तान थे लाला अमरनाथ और अब्दुल हफ़ीज़ कारदार। हर जगह लिखा है कि लाला जी को कप्तान इसलिए बनाया था चूंकि वे पाकिस्तान के क्रिकेटरों की क्रिकेट बहुत अच्छी तरह जानते थे और उनके साथ और खिलाफ खूब खेले थे।
ये एक सच्चाई है कि लाला जी की क्रिकेट को तो निखारा ही एक मुस्लिम परिवार ने था। पूरा ध्यान क्रिकेट पर रहे, इसलिए वे रहते भी उन्हीं के घर में थे। लाहौर में मोची गेट के साथ एक गली में, भले ही खस्ता हालत में, वह घर आज तक मौजूद है जिसके 'चौबारे' के कमरे में लाला अमरनाथ रहे थे।
किस्सा ये है कि 1920 के सालों के शुरू में तवाकल माजिद (Tawakkal Majid) (उस मशहूर राणा परिवार के सीनियर जिसने बाद में पाकिस्तान को अंपायर शकूर राणा और क्रिकेटर शफ़ाक़त एवं अज़मत राणा दिए- उनके बच्चों ने पार्टिशन के बाद राणा नाम अपनाया) नाम के एक कोच थे और क्रेसेंट नाम का वह मशहूर क्लब चलाते थे जिसने पाकिस्तान को कई टेस्ट क्रिकेटर दिए।
उन्होंने एक गली में लाला अमरनाथ को खेलते देखा तो पारखी आंख ने छिपी टेलेंट को पहचान लिया। पहुंच गए लाला अमरनाथ के घर जो बड़े साधारण परिवार से थे। न सिर्फ मुफ्त कोचिंग और अपने घर रखने का प्रस्ताव रखा, कहा स्कालरशिप भी देंगे जिसका पैसा परिवार को मिला करेगा। बात बन गई और हालांकि लाला अमरनाथ का घर यहां से ज्यादा दूर नहीं था पर वे तवाकल माजिद के घर रहने आ गए।
इसी क्लब में कोचिंग ली और बेहतरीन क्रिकेटर बने। मशहूर टेस्ट क्रिकेटर अमीर इलाही भी, इसी तरह उस घर में रहते थे। लाला अमरनाथ इतने ख़ास क्रिकेटर थे क्लब टीम के कि एक बार एक टूर्नामेंट के फाइनल से पहले, दूसरी टीम ने उन्हें पिटवाने का इंतज़ाम करवाया ताकि खेल न पाएं। ये किस्सा अनारकली बाजार का है। तब क्लब टीम में, लाला अमरनाथ के साथी मुस्लिम क्रिकेटर, उन्हें चोटों से बचाने के लिए उनके ऊपर लेट गए थे। अगले दिन लाला अमरनाथ ने मैच जीता टीम के लिए।
क्लब के, एक मैच को, मशहूर ऑस्ट्रेलियाई कोच फ्रैंक टेरेंट ने देखा तो उनके बारे में महाराजा पटियाला को बताया (वे तब महाराजा की टीम के भी कोच थे) और एक बड़ी नौकरी दिला कर लाला अमरनाथ को लाहौर से बुला लिया।
पार्टिशन के बाद जब भी लाला अमरनाथ पाकिस्तान गए तो उस घर में, तो राणा परिवार से मिलने जरूर जाते थे। तवाकल माजिद के बेटे जिमी राणा का कहना है कि एक बार वे अपने दो बेटों को साथ लाए थे। लाला अमरनाथ ने घर के दरवाजे पर माथा टेका। दोनों बेटों से कहा वे भी ऐसा करें। जब एक ने माथा जमीन पर लगाया तो माथे पर मिट्टी लग गई। वे उसे रुमाल से पोंछने लगे तो लाला अमरनाथ ने रोका और कहा इसे पोंछो नहीं, सारे चेहरे पर लगा लो क्योंकि अगर ये घर न होता तो तुम दोनों गलियों में खेल रहे होते।
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अब एक ख़ास सवाल ये कि इस सब का लाला अमरनाथ पर लिखी, उनके बेटे राजिंदर अमरनाथ की किताब 'द मेकिंग ऑफ़ ए लेजेंड' में जिक्र क्यों नहीं है? एक ब्रिटिश पत्रकार ने राजिंदर अमरनाथ से इस बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि लाला अमरनाथ ने उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताया। हां, पिटाई वाले किस्से का किताब में जिक्र किया है।