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Cricket Tales - वो शख्स जिसने भारत को क्रिकेट पॉवर बनाने में अहम रोल निभाया, जगमोहन डालमिया के मैन फ्राइडे थे

कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने भारत को क्रिकेट में, एक क्रिकेट खेलने वाली टीम से 'क्रिकेट पॉवर' बनते नजदीक से देखा। इनमें से कई, उस कोशिश में शामिल भी थे पर उनका कहीं नाम नहीं है। ऐसा ही एक नाम

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 वो शख्स जिसने भारत को क्रिकेट पॉवर बनाने में अहम रोल निभाया, जगमोहन डालमिया के मैन फ्राइडे थे
वो शख्स जिसने भारत को क्रिकेट पॉवर बनाने में अहम रोल निभाया, जगमोहन डालमिया के मैन फ्राइडे थे (Image Source: Twitter)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Feb 06, 2023 • 01:14 PM

Cricket Tales - कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने भारत को क्रिकेट में, एक क्रिकेट खेलने वाली टीम से 'क्रिकेट पॉवर' बनते नजदीक से देखा। इनमें से कई, उस कोशिश में शामिल भी थे पर उनका कहीं नाम नहीं है। ऐसा ही एक नाम कुणाल कांति घोष (Kunal Ghosh) का था- उनका निधन हो गया है। जब क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (CAB) और बीसीसीआई (BCCI) के बड़े-बड़े ऑफिशियल का नाम, बीतता समय भुला रहा है तो कुणाल घोष का नाम किसे याद होगा?

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
February 06, 2023 • 01:14 PM

थे तो क्रिकेट पत्रकार पर बहुत जल्दी, भारत में क्रिकेट को पेशेवर युग तक ले जाने वाले दिग्गज एडमिनिस्ट्रेटर में से एक, जगमोहन डालमिया ने उन्हें पहचान लिया। उसके बाद, जो व्यक्ति जगमोहन डालमिया के न सिर्फ सबसे नजदीक रहा, उनके हर फैसले में 'थिंक टैंक' था- यही कुणाल घोष थे। वे आम तौर पर कभी चर्चा में नहीं रहे क्योंकि अपनी इस पहचान का कभी फायदा नहीं उठाया- कभी दावा नहीं किया कि वे जगमोहन डालमिया के ज्यादातर क्रिकेट फैसलों के पीछे का 'दिमाग' हैं और न कभी खुद को एक 'पॉवर' के तौर पर देखा। कई बार जब ये सवाल पूछा गया कि ये कुणाल घोष कौन हैं तो कलकत्ता में जवाब मिलता था- जगमोहन डालमिया का परिचय ही, कुणाल घोष का परिचय है।
 
एक सीनियर पत्रकार, जिन्होंने ये सब बड़े नजदीक से देखा, उन्होंने लिखा- डालमिया के लगभग हर बड़े और क्रिकेट को आगे ले जाने वाले काम/फैसले में कुणाल की ख़ास छाप थी। जो जगमोहन डालमिया ने बोला- उसे कुणाल घोष लिखते थे, जो जगमोहन डालमिया चिट्ठियों/ ऑफिशियल कॉरस्पोंडेंस में लिखते थे- उसकी ड्राफ्टिंग कुणाल घोष करते थे, कोई भी लिखित संदेश हो- कुणाल लिखते थे, किसी नई स्कीम पर जो चर्चा होनी है उसका मसौदा- कुणाल तैयार करते थे, जगमोहन डालमिया से किसी नए प्रोजेक्ट पर बात करो- वे कहते थे पहले कुणाल से चर्चा कर लो, क्रिकेट में कोई मुश्किल आ जाए- वे सबसे पहले हालात का जायजा लेने और मामले को समझने के लिए कुणाल को भेजते थे।
  
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कुणाल दा, अपने समय में, भारत में क्रिकेट से जुड़े बड़े-बड़े फैसलों के कितने नजदीक थे और क्या ऐसा था जो उन्हें मालूम नहीं था- इसी से उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी। कभी कोई राज नहीं बताया, कभी अंदर की बात उनके मार्फत बाहर नहीं आई- और इसीलिए जगमोहन डालमिया ने उन पर हमेशा पूरा भरोसा किया। जगमोहन डालमिया के स्टॉफ में और लोग भी थे पर वे उनके 'वन मैन आर्मी' थे।  

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जहां-जहां डालमिया गए- आईसीसी, दुनिया भर के बोर्ड रूम या बीसीसीआई- कुणाल दा भी गए। वे एमबीए थे। तब भी स्पोर्ट्स रिपोर्टिंग में आ गए और इसमें भी अपनी अलग पहचान बनाई। उसके बाद, डालमिया के साथ काम में लग गए। बाग बाजार के मशहूर घोष परिवार से थे- ऐसा परिवार जिसमें फ्रीडम फाइटर भी थे और दो नेशनल स्तर के अखबार- अमृत बाजार पत्रिका और जुगांतर शुरु किए।  

एक और लेखक ने लिखा-  कुणाल के बिना डालमिया, बिना पहियों की मोटर कार की तरह से थे। यहां तक कि कई बार तो मीडिया को बीसीसीआई अध्यक्ष की तरफ से इंटरव्यू भी दिया! डालमिया, क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में, एक के बाद एक पायदान ऊपर चढ़ते रहे पर उनकी इस सफलता में, कुणाल दा ने कभी अपने योगदान की बात नहीं की। जब डालमिया, आईसीसी में अपनी पहचान बनाने की बात कर रहे थे तो उन्हें, क्रिकेट ग्लोबलाइजेशन का सुझाव कुणाल दा ने ही दिया था। इसी मुद्दे पर, डालमिया ने आईसीसी प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ा था और जीते।  

जब 1990 के आस-पास, बंगाल में जूनियर क्रिकेट का ढांचा लड़खड़ा रहा था तो कुणाल दा ने ही डालमिया को ये सुझाव दिया था कि बिना देरी, राजू मुखर्जी  और गोपाल बोस को बंगाल की जूनियर टीमों की कोचिंग में शामिल करें। भारतीय क्रिकेट के सबसे चर्चित मसलों में से एक है- ईडन गार्डन्स में पाकिस्तान के विरुद्ध टेस्ट में धीमे ओवर रेट की वजह से, कप्तान सौरव गांगुली को ससपेंड होने से बचाना। तब भी, राजू मुखर्जी और सिद्धार्थ शंकर रे की मदद लेने का सुझाव, कुणाल दा का था। क्रिकेट की बारीकियां, राजू मुखर्जी ने बताईं और रे ने केस लड़ा और जीत गए। सभी की तारीफ़ हुई लेकिन कुणाल दा का नाम किसी ने भी नहीं लिया- वे ही तो इन सभी को इस मुहिम में लाए थे। 

इस सब से ये तो तय हो जाता है कि वे, कभी भारतीय और विश्व क्रिकेट के दिग्गज जगमोहन डालमिया के मैन फ्राइडे थे। कभी बड़ा ऑफिस या सुविधाएं नहीं मांगीं- बॉस के कमरे के पीछे, ईडन में एक छोटे से कमरे से अपना काम करते रहे और हर जरूरत का डॉक्यूमेंट उनके पास तैयार मिलता था। जो फाइल में नहीं था- वह उनके दिल में था। कई लोग उन्हें, जगमोहन डालमिया का पीए कहते थे। जगमोहन डालमिया के बेटे अविषेक की क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में एंट्री में भी कुणाल दा का योगदान था और सब कुछ बताया। जब कुणाल दा 2007 के आसपास अमेरिका चले गए तो बैकरूम में उनके क्रिकेट फाइलों/डॉक्यूमेंट का काम अविषेक ने संभाला। ये वह दौर था जब जगमोहन डालमिया, बीसीसीआई में शरद पवार ग्रुप से टक्कर ले रहे थे- तब जिस भी मसले पर जानकारी की जरूरत सामने आई- वह फाइलों में मौजूद थी। उनके साथ, डालमिया दो वर्ल्ड कप के आयोजन में शामिल रहे, ईडन गार्डन्स को एक इंटरनेशनल शो पीस में बदला और बीसीसीआई को, विश्व क्रिकेट में नई पहचान दिलाई।  

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आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि क्या वास्तव में कप्तान सचिन तेंदुलकर ने, जगमोहन डालमिया से दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध सीरीज के आख़िरी टेस्ट से पहले ईडन ट्रैक पर घास काटने का अनुरोध किया था? सब मानते हैं कि इस राज का जवाब कुणाल दा के पास था पर वे कभी नहीं बोले। रिकॉर्ड में ये दर्ज है कि तेंदुलकर के भारतीय टीम की तरफ से डालमिया से अनुरोध के बाद, शाम को पिच से काफी घास काट दी गई थी। ऑफिशियल तौर पर जगमोहन डालमिया ने तेंदुलकर से मिलने या ऐसा कोई आदेश देने की बात से साफ़ इंकार कर दिया। कुणाल दा आज हमारे बीच नहीं और ऐसे और भी कई सवाल हैं, जिनका जवाब सिर्फ वे दे सकते थे और अब कोई नहीं देगा।
 

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