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ऐसा वन डे न इससे पहले कभी खेला गया और उम्मीद करें न कभी खेला जाएगा

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध तीन मैचों की वन डे सीरीज में जब केएल राहुल ने पहले वन डे में कप्तानी की तो कई नए रिकॉर्ड चर्चा में आए। इनमें से एक- अपने 39वें वन डे में भारत के कप्तान और

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Mohinder Amarnath
Mohinder Amarnath (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Jan 22, 2022 • 12:58 PM

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध तीन मैचों की वन डे सीरीज में जब केएल राहुल ने पहले वन डे में कप्तानी की तो कई नए रिकॉर्ड चर्चा में आए। इनमें से एक- अपने 39वें वन डे में भारत के कप्तान और 50 वन डे से पहले टीम की कप्तानी करने वाले दूसरे भारतीय क्रिकेटर। उनसे पहले- मोहिंदर अमरनाथ जो 1984 में अपने 35 वें वन डे में कप्तान थे।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
January 22, 2022 • 12:58 PM

जब भी इस अमरनाथ क्रिकेटर का जिक्र होता है- उनकी ऑलराउंड क्रिकेट का जिक्र होता है, इंटरनेशनल क्रिकेट में कप्तानी का नहीं। संयोग देखिए- मोहिंदर कप्तान तो जल्दी बन गए पर ये सिर्फ उस सीरीज में नियमित कप्तान सुनील गावस्कर की मैच के दिन ख़राब फिटनेस की वजह से था। मोहिंदर ने इसके बाद किसी वन डे में टीम इंडिया की कप्तानी नहीं की।

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कौन सा था ये मैच? इस मैच का जिक्र तो बार-बार होता है पर ऐसा क्यों कि कोई भी इस मैच को याद नहीं रखना चाहता? खुद मोहिंदर अपने करियर प्रोफाइल में इस मैच का गर्व से जिक्र नहीं करते। इस सवाल का जवाब मैच की तारीख ही दे देगी- 31अक्टूबर 1984 का दिन था।

भारत की टीम पाकिस्तान टूर पर थी 3-टेस्ट और 3-वन डे खेलने। उस दिन सीरीज का दूसरा वन डे था सियालकोट में। मैच की सबसे बड़ी घटना ग्राउंड से बाहर की थी- दिल्ली में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का निधन। न सिर्फ ये वन डे बीच में रोक दिया- कराची में तीसरा टेस्ट और आखिरी वनडे खेले बिना छोड़ दिए और टीम इंडिया फौरन वापस लौट आई। इस मैच का एक पहलू और है- ये मैच बीच में रोका किसके आदेश से? घटना मेजबान देश की नहीं, दूसरे देश से आई खबर की थी। उसी अनोखे पहलू पर बात करते हैं।

सियालकोट कोई बहुत मशहूर क्रिकेट सेंटर नहीं था- दोनों देशों में इसकी चर्चा इसलिए ज्यादा होती है कि भारत-पाकिस्तान लाइन ऑफ़ कंट्रोल से ज्यादा दूर नहीं और लाहौर से लगभग दो घंटे की ड्राइव। शहर भी ऐसा कि टीमों को ठहराने का कोई अच्छा इंतज़ाम तक नहीं था- उस वन डे से पहले तो वहां मैच हो तो टीमें लाहौर में ठहरती थीं। सुबह 4 बजे उठाया जाता था क्रिकेटरों को मैच के लिए तैयार होने के लिए। एक नया होटल 1984 में ही बना और पहली बार टीमें वहां ठहरीं। दिन छोटे और चूँकि स्टेडियम में फ्लड लाइट्स नहीं थीं- इसलिए ये 40 ओवर का मैच था। मैच से पहले क्रिकेट माहौल बड़ा गर्म था- सुनील गावस्कर खुले आम अंपायरों की आलोचना कर रहे थे।

शहर के डिप्टी कमिश्नर इस्माइल कुरैशी मैच के दिन जिन्ना स्टेडियम में मौजूद थे। मोहिंदर अमरनाथ ने टॉस जीता। दो शुरुआती विकेट के नुकसान के बाद वेंगसरकर और संदीप पाटिल ने 143 रन की साझेदारी से भारत की पारी को संभाला। मैच चल रहा था और बीच में, वहां के लगभग साढ़े दस बजे कुरैशी को पंजाब के मुख्य सचिव का फोन आया- खबर दी कि भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिल्ली में गोली मारकर घायल कर दिया गया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक ने मैच को फौरन रद्द करने का आदेश दिया था।

कुरैशी बड़ी मुश्किल में पड़ गए- राष्ट्रपति का मैच रोकने का आदेश पर इसे लागू कैसे करें? स्टेडियम में लगभग 25 हज़ार शोर मचाते दर्शक और कुरैशी को डर था कि मैच रोकने पर कई घंटे लाइन में लगकर, टिकट खरीदने वाले ये दर्शक कहीं भड़क न उठें। दंगा न हो जाए। इसी डर से उन्होंने मैच चलने दिया।

भारतीय टीम तब खेल रही थी जब और बुरी खबर आई। भारत की पारी खत्म हुई 210-3 पर। वेंगसरकर एक शानदार शतक से चूक गए थे- 102 गेंद पर 94* रन। लंच ब्रेक में कुरैशी भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में गए। गावस्कर और टीम मैनेजर राज सिंह डूंगरपुर से बात की। कुरैशी ने कई साल बाद एक इंटरव्यू में बताया- 'गावस्कर पूरी तरह सदमे में हांफ रहे थे।' जो कुछ हुआ उसे सुनकर वेंगसरकर और शास्त्री रो पड़े।

कुरैशी ने तब भी राष्ट्रपति जिया के आदेश के बारे में नहीं बताया बल्कि उनसे पूछा कि वह क्या करना चाहते हैं? टीम ने फौरन तय किया कि वापस जाएंगे। कुरैशी तब तक, अपने आप, टीम के लौटने का सारा इंतजाम करा चुके थे। स्टेडियम से होटल और सीधे लाहौर रवाना- गाड़ियां तैयार थीं। मैच रोकने की ऑफिशियल घोषणा से पहले टीम इंडिया स्टेडियम से जा चुकी थी।

अभी भी भीड़ को बताना बाकी था। कुरैशी नहीं चाहते थे कि कोई गड़बड़ हो- भारी पुलिस बुला ली। तब मैच रोकने की घोषणा हुई और ये भी कि टिकट के पैसे वापस नहीं मिलेंगे। कोई गड़बड़ नहीं हुई। इस्माइल कुरैशी के बेहतर इंतजाम और उस नाजुक मौके को सही तरह संभालने के लिए सब जगह उनकी तारीफ हुई। इसीलिए उन्हें, 1987 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के हिस्से के मैचों के आयोजन के लिए बनाई कमेटी में लिया गया।

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कौन याद रखना चाहेगा इस मैच को?

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