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उस गेंदबाज ने सुनील गावस्कर को एक घंटे से ज्यादा खब्बू बल्लेबाज के तौर पर खेलने को मजबूर कर दिया था- ऐसा हुआ क्यों?

अंडर 19 वर्ल्ड कप की बदौलत Ambidexterity खूब चर्चा में है और इसके लिए जिम्मेदार है ऑस्ट्रेलिया की टीम में स्पिनर निवेथन राधाकृष्णन। उनकी खूबी है दोनों हाथों का बराबर कुशलता से इस्तेमाल। क्रिकेट में ऐसे कई हैं जो एक

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Sunil Gavaskar Left Handed Batting
Sunil Gavaskar Left Handed Batting (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Jan 18, 2022 • 11:29 AM

अंडर 19 वर्ल्ड कप की बदौलत Ambidexterity खूब चर्चा में है और इसके लिए जिम्मेदार है ऑस्ट्रेलिया की टीम में स्पिनर निवेथन राधाकृष्णन। उनकी खूबी है दोनों हाथों का बराबर कुशलता से इस्तेमाल। क्रिकेट में ऐसे कई हैं जो एक हाथ के बल्लेबाज़ तो और दूसरे हाथ के गेंदबाज़ जैसे कि दाएं हाथ से बल्लेबाजी और बाएं हाथ से गेंदबाजी या इसके उलट। बल्लेबाज़ी में भी दोनों हाथों से खेलने वाले बल्लेबाज और इसकी सबसे चर्चित मिसाल है केविन पीटरसन का स्विच हिट।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
January 18, 2022 • 11:29 AM

इसी संदर्भ में एक हैरान करने वाली मिसाल एक रणजी मैच में टर्न लेती पिच पर सुनील गावस्कर की खब्बू के तौर पर बल्लेबाज़ी है। सुनील गावस्कर ने कोई स्विच हिट नहीं लगाया- वे तो 66 मिनट खेले खब्बू बल्लेबाज़ बनकर। ऐसा क्यों हुआ? किन हालात ने और ख़ास तौर पर किस गेंदबाज़ ने गावस्कर को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था? सुनील गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में बेहतर तकनीक वाले बल्लेबाज़ थे पर उन जैसे दांए हाथ के बल्लेबाज का खब्बू बनकर खेलना अनोखा किस्सा है।

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सुनील गावस्कर को खब्बू के तौर पर खेलने पर मजबूर किया स्पिनर रघुराम भट्ट ने जो कर्नाटक के लिए खेलते थे। घरेलू क्रिकेट में इस स्पिनर के सामने उस जमाने के बड़े-बड़े बल्लेबाज भी टिक नहीं पाते थे। सुनील गावस्कर जैसे टॉप बल्लेबाज ने खब्बू बनकर इसलिए बल्लेबाजी की क्योंकि दाहिने हाथ के बल्लेबाज को रघुराम की टर्न लेती गेंद बार -बार चकमा दे रही थी।

रघुराम का फर्स्ट क्लास रिकॉर्ड : 82 मैच, 374 विकेट। गजब की टेलेंट पर शायद किस्मत साथ नहीं थी इसीलिए सिर्फ दो टेस्ट खेले। टेस्ट में जो चार विकेट लिए वे जावेद मियांदाद, मुदस्सर नजर, क्लाइव लॉयड और गस लोगी के थे। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने एक के बाद एक कमाल के स्पैल डाले- लाइन और लेंथ पर गजब की पकड़ थी। रघुराम ने 1981-82 रणजी ट्रॉफी में कर्नाटक के फाइनल में पहुंचने में अहम भूमिका निभाई- इसमें बॉम्बे के विरुद्ध सेमीफाइनल में 13 विकेट लिए (8 पहली पारी में- इसमें एक हैट्रिक भी)। यही वह मैच है जिसमें रघुराम की गेंदबाजी इतनी जबरदस्त थी कि सुनील गावस्कर को बाएं हाथ से बल्लेबाजी करनी पड़ी।

ये सेमीफाइनल बैंगलोर में था। बॉम्बे टीम में सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसरकर, संदीप पाटिल, रवि शास्त्री, बलविंदर संधू और अशोक मांकड़ जैसे खिलाड़ी थे। बॉम्बे ने पहले बल्लेबाजी की - रघुराम भट जैसे ही गेंदबाजी करने आए, बॉम्बे की पारी ढह गई। गुलाम पारकर, अशोक मांकड़, सुरू नायक लगातार तीन गेंदों पर आउट- पारी में 8 विकेट और बॉम्बे 271 रन पर आउट। कर्नाटक ने जवाब में 470 रन बनाए।

दूसरी पारी तक पिच पूरी तरह टूट चुकी थी और स्पिनरों को मदद मिल रही थी। ऐसे में रघुराम भट ने फिर कहर बरपाया और बी विजयकृष्ण के साथ मिलकर बॉम्बे के 6 विकेट 160 रन तक गिरा दिए। गावस्कर सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए आए। देखा कि रघुराम की गेंद को बड़ा टर्न मिल रहा है- इसलिए बाएं हाथ से बल्लेबाजी शुरू कर दी। कमाल देखिए- रघुराम के सामने गावस्कर खब्बू और बाक़ी गेंदबाज़ों के सामने दाएं हाथ के बल्लेबाज़। गावस्कर को 6 फील्डर ने घेरा हुआ था। गावस्कर का स्कोर- 18* और बॉम्बे को हार से तो बचा लिया पर पहली पारी की बढ़त की बदौलत कर्नाटक को फाइनल खेलने से नहीं रोक पाए।

गावस्कर ने उस दिन दिखा दिया कि टर्निंग विकेट पर मास्टर क्लास बल्लेबाजी किसे कहते हैं? आपको ये जानकार हैरानी होगी कि सुनील गावस्कर की इस खब्बू बल्लेबाजी का जिक्र कन्नड़ फिल्म गणेशन मदुवे में किया गया।

इस किस्से में सबसे बड़ा सवाल ये है कि गावस्कर को ऐसा करने से क्या फायदा मिला और क्या गावस्कर की इस कोशिश की तारीफ हुई? खुद गावस्कर ने शब्दों में- 'रघुराम भट को उस पिच पर खेलना बड़ा मुश्किल था। चूंकि वह बाएं हाथ के ऑर्थोडॉक्स स्पिनर थे, गेंद को दाएं हाथ के बल्लेबाज़ से दूर टर्न करा रहे थे- मुझे लगा, मुकाबला करने का एकमात्र तरीका बाएं हाथ से खेलना है- गेंद टर्न लेगी, उछलेगी, शरीर पर लगेगी पर एलबीडब्लू होने के जोखिम के बिना।'

यह मार्च 1982 की बात है। उस वक़्त इस घटना ने क्रिकेट की दुनिया में तहलका मचा दिया था। सुनील गावस्कर का बेटा रोहन तब 6 साल का था और जब खुद क्रिकेट खेली तो इस पर विश्वास नहीं कर सके और अपने पिता से पूछ ही लिया कि वास्तव में ऐसा किया क्यों ? भट कहते हैं- 'मैंने सारे हथकंडे आजमाए- तेज़ वाला, आर्मर, चाइनामैन, यॉर्कर- ओवर द विकेट गेंदबाजी, विकेट और गेंदबाजी क्रीज का इस्तेमाल किया लेकिन गावस्कर के आत्मविश्वास को मात नहीं दे सका।' उस बॉम्बे टीम में एकमात्र खब्बू सुरू नायक ने गावस्कर के बारे में कहा कि वह कुछ ऐसा करने में कामयाब रहे जहां प्राकृतिक खब्बू भी कामयाब नहीं हुए। नायक ने खुद 0 और 9 रन बनाए।

सुनील गावस्कर को मैच के किस मुकाम पर ऐसा लगा कि बाएं हाथ से बल्लेबाजी करनी चाहिए तो जवाब था- 'मेरे दिमाग में पहले दिन ही ये बात आ गई थी। टीम में ज्यादा खब्बू बल्लेबाज नहीं थे और मैं सोचता रहा कि कैसे एक खब्बू बल्लेबाज रघु के स्पिन खतरे को कुछ हद तक नकार सकता है?' सुनील गावस्कर ने पहले टीम के खिलाड़ियों से इस स्कीम पर बात की और जब मैनेजर शरद दिवाडकर को बताया तो वे इसे सुनकर घबरा गए। ये बड़ी अजीब सोच थी क्योंकि सुनील को लेफ्टी बल्लेबाजी का कोई पिछला अनुभव नहीं था- टेनिस बॉल क्रिकेट में भी नहीं। ऐसा करने में सबसे बड़ी मुश्किल होती है फुटवर्क की तेजी में कमी पर गावस्कर ने भांप लिया था कि वहां इससे नुक्सान नहीं होगा क्योंकि गेंद बस टर्न लेकर पैड या शरीर से टकरा रही थी।

एक बड़ी अनोखी बात ये है कि गावस्कर की इस बेमिसाल सोच और कोशिश की हर किसी ने तारीफ़ नहीं की। खुद बॉम्बे प्रेस ने लिखा कि गावस्कर ने अपने साथियों को उनकी घटिया और बिना सोच वाली बल्लेबाज़ी पर शर्मिंदा करने के लिए ऐसा किया। एक और सीनियर जर्नलिस्ट ने लिखा- 'गावस्कर बड़े स्टार थे, लेकिन मनमौजी। उस समय भारतीय क्रिकेट से भी ऊपर थे और जो चाहते थे, करते थे- बाएं हाथ से बल्लेबाजी की वजह क्रिकेट नहीं थी।'

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इसलिए हर कोई गावस्कर के एक्शन से खुश नहीं था। कुछ खिलाड़ी नाराज भी हुए। कुछ जानकारों ने कहा- गावस्कर ने जो किया वह नियमों (एलबीडब्लू आउट होने से बचने के लिए) और स्पिरिट ऑफ़ क्रिकेट के उलट था। रघुराम भट ने इसे गावस्कर का अहंकार नहीं माना- 'उन्होंने जो किया वह नियमों के दायरे में था। मैच के बाद, मैंने उससे कहा- नमस्कार, सर। उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और चल दिए। मेरे लिए वो ही काफी था।'

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